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चित्र परिचय ३ |
कालचक्र वर्तन ___ जम्बूद्वीप के भरत तथा ऐरवत क्षेत्र में समयचक्र (कालचक्र) सतत परिवर्तनशील रहता है। यह निरन्तर घटता-बढ़ता, ह्रास विकास करता है।
चित्र में बताये अनुसार बारह आरों (विभागों) का एक कालचक्र होता है। इसमें उत्सर्पिणी काल के छह तथा अवसर्पिणी काल के छह-छह आरे होते हैं।
अवसर्पिणी काल में पहला सुषम-सुषम आरा सर्वाधिक सुखमय तथा श्रेष्ठ होता है। सूत्र २६ से ३२ तक में इसका वर्णन है। दूसरा सुषम आरा इससे कुछ हीन होता है। शरीर आयु, आहार, पर्यावरण आदि म सभी पहले आरे से घटते-घटते जाते हैं। (-सूत्र ३३) सुषम-दुषम तीसरे आरे के अंतिम भाग में प्रथम
तीर्थंकर का जन्म होता है। अग्नि की उत्पत्ति हाती है। (-सूत्र ३४-४३) दुषम-सुषम नामक चौथे आरे 5 में शेष २३ तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव-बलदेव उत्पन्न होते हैं। मनुष्य कृषि, व्यापार, कला-कौशल सीख जाता है। दुषम नामक पाँचवाँ आरा प्राय: दु:खमय रहता है। व्यापार उद्योग आदि में झूठ आदि की वृद्धि होती है। पर्यावरण दूषित रहता है तथा छठा आरा अत्यन्त दु:खमय होता है। मनुष्य का शरीर १ हाथ मात्र का, आयुष्य २० वर्ष मात्र तथा वातावरण अत्यन्त उष्ण, अत्यन्त शीतमय होता है। (-सूत्र ४५-४६) पुन:
उत्सर्पिणी काल प्रारम्भ होता है और जिस प्रकार हीनता आई अब उसी क्रम से सभी बातें धीरे-धीरे म अभिवृद्धि की ओर होती है। अवसर्पिणी का छठा तथा उत्सर्पिणी का पहला आरा एक जैसा दु:खमय होता है। इसी प्रकार अवसर्पिणी का पहला व उत्सर्पिणी का छठा आरा एक समान सुखमय होता है।
-वक्षस्कार २, सूत्र ४७-५३ ॥
PASSAGE OF THE TIME CYCLE In the Bharat and Airavat areas of Jambudveep the time cycle is ever changing. It always continues to regress and progress.
As shown in the illustration one wheel-like cycle of time is divided into twelve spokes. These are LE six spokes of the progressive half-cycle (Utsarpini) and six of the regressive half-cycle (Avasarpini).
Sukham-sukham, the first spoke or epoch of the progressive half-cycle is Sukham-sukhama Ara and is the best and the period of extreme happiness. It is described in details in Sutras 26 to 32
The second Sukhama Ara (epoch of happiness) is with slight regression. Body constitution, lifespan, food, ecology all undergo regression as compared to the first epoch. -- Sutra 33
Sukham-dukhama Ara (epoch of more happiness than sorrow) sees the advent of the first Tirthankar during its last phase. There also is the origin of fire. — Sutra 34-43
Dukham-sukhama Ara (epoch of more sorrow than happiness) is the period when the remaining 23 Tirthankars are born besides Chakravartis, Vasudevas and Baladevas. Human beings learn farming, trading, arts and crafts.
Dukhama Ara (epoch of sorrow) is mostly filled with misery. There is enhancement of falsity and other vices in trading and other activities. Atmosphere is polluted. Dukham-dukhama Ara, the sixth epoch, is the period of extreme sorrow, Humans are merely one cubit tall and have a life-span of just 20 years. Weather has extremes of heat and cold -Sutra 45-46
After the end of regressive half-cycle the progressive half-cycle commences. Like the 17 regression, this period undergoes similar and gradual progression in conditions in reverse order. The
sixth epoch of the regressive period is similar to the first epoch of the progressive half-cycle. In the fi same way the first epoch of the regressive period and last epoch of the progressive period are 47 fi equally pleasant.
- Vakshaskar-2, Sutra-47-534 D5555555555555555555555555555555550
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