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________________ क फ फफफफ )) )) ))))))))) )))) द्वितीय वक्षस्कार SECOND CHAPTER GUIGUIN INTRODUCTION इस द्वितीय वक्षस्कार में भरत क्षेत्र का वर्णन, कालचक्र-वर्तन, उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी आरक तथा उनमें उत्पन्न मनुष्यों का स्वभाव, उनकी जीवनचर्या, कुलकर एवं प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के जन्म से दीक्षा, केवलज्ञान एवं परिनिर्वाण तक का वर्णन है। In the second chapter there is description of Bharat area, the timecycle, divisions of Utsarpani and Avasarpani time-cycle, the nature of human beings born in the respective periods, their daily routine, the lifesketch of kulkars, the life-sketch of Tirthankar Rishabhdev from the very birth up to renunciation, attainment of omniscience and then salvation. भरत क्षेत्र : कालचक्र-वर्तन BHARAT CONTINENT : TIME-CYCLE २४. [प्र. १ ] जंबुद्दीवे णं भंते ! दीवे भारहे वासे कतिविहे काले पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! दुविहे काले पण्णत्ते, तं जहा-ओसप्पिणिकाले अ उस्सप्पिणिकाले । [प्र. ] ओसप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! छविहे पण्णत्ते, तं जहा-सुसम-सुसमाकाले १, सुसमाकाले २, सुसमदुस्समाकाले ३, दुस्सम-सुसमाकाले ४, दुस्समाकाले ५, दुस्सम-दुस्समाकाले ६। [प्र. ] उस्सप्पिणिकाले णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! छब्बिहे पण्णत्ते, तं जहा-दुस्सम-दुस्समाकाले १, दुस्समाकाले २, दुस्सम सुसमाकाले ३, सुसम-दुस्समाकाले ४, सुसमाकाले ५, सुसम-सुसमाकाले ६। २४. [प्र. १ ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत भरत क्षेत्र में कितने प्रकार का काल प्रवर्तित है ? [उ. ] गौतम ! दो प्रकार का काल है-अवसर्पिणी काल तथा उत्सर्पिणी काल। [प्र. ] भगवन् ! अवसर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? [उ. ] गौतम ! अवसर्पिणी काल छह प्रकार का है, जैसे-(१) सुषम-सुषमाकाल, (२) सुषमाकाल, (३) सुषम-दुःषमाकाल, (४) दुःषम-सुषमाकाल, (५) दुःषमाकाल, (६) दुःषम- दुःषमाकाल। [प्र. ] भगवन् ! उत्सर्पिणी काल कितने प्रकार का है ? [उ. ] गौतम ! छह प्रकार का है, जैसे-(१) दुःषम-दुःषमाकाल, (२) दुःषमाकाल, (३) दुःषमसुषमाकाल, (४) सुषम-दुःषमाकाल, (५) सुषमाकाल, (६) सुषम-सुषमाकाल। द्वितीय वक्षस्कार 牙牙牙牙牙步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步5555555 (35) Second Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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