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________________ 555555555555555 5 (Q.) Reverend Sir! What is the shape of the human beings residing in northern-half Bharat? [Ans.] Gautam ! The physical structure (figure, height, life-span) of human beings residing in Uttarardh Bharat is of many types. They have life-span of many years and after completing it some take birth as hellish beings, some as sub-human beings, some as human beings and some as celestial beings. Some of them attain omniscience, salvation and liberation from cycles of birth and death and thus bring a complete end of their miseries. ऋषभकूट RISHABH KOOT २३. [प्र. ] कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे वासे उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? __ [उ. ] गोयमा ! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, सिंधुकुंडस्स पुरथिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपब्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे उसहकूडे णामं पबए पण्णत्ते-अट्ट जोअणाई उडे उच्चत्तेणं, दो जोअणाई उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोअणाई विक्खंभेणं, मज्झे छ जोअणाई विक्खंभेणं, उवरि चत्तारि जोअणाई विक्खंभेणं, मूले साइरेगाइं पणवीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोअणाई परिक्खेवेणं, उवरिं साइरेगाई दुवालस जोअणाई परिक्खेवेणं। मूले वित्थिण्णे, मज्झे संक्खित्ते, उप्पिं तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए, सब्बजंबूणयामए, अच्छे, सण्हे, जाव पडिरूवे। से णं एगाए पउमवरवेइआए तहे (एगेण य वणसडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते। उसहकूडस्स णं उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते। से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव वाणमंतरा जाव विहरंति। तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे महं एगे भवणे पण्णत्ते) कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसऊणं कोसं उठं उच्चत्तेणं, अट्ठो तहेव, उप्पलाणि, पउमाणि (सहस्सपत्ताई, सयसहस्सपत्ताई-उसहकूडप्पभाई, उसहकूडवण्णाई)। उसभे अ एत्थ देवे महिटीए जाव दाहिणेणं रायहाणी तहेव मंदरस्स पव्वयस्स जहा विजयस्स अविसेसियं । २३. [प्र. ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्ध भरत क्षेत्र में ऋषभकूट नामक पर्वत कहाँ है ? । [उ. ] गौतम ! हिमवान् पर्वत के जिस स्थान से गंगा महानदी निकलती है, उसके पश्चिम में; जिस स्थान से सिन्धु महानदी निकलती है, उसके पूर्व में; चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब-मेखला के निकटस्थ प्रदेश में; जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्ध भरत क्षेत्र में ऋषभकूट नामक पर्वत है। वह आठ योजन ऊँचा, दो योजन गहरा, मूल में आठ योजन चौड़ा, बीच में छह योजन चौड़ा तथा ऊपर चार योजन चौड़ा है। मूल में कुछ अधिक पच्चीस योजन परिधियुक्त, मध्य में कुछ अधिक अठारह योजन परिधियुक्त तथा ऊपर कुछ अधिक बारह योजन परिधियुक्त है। मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त-सँकड़ा तथा ऊपर पतला है। वह आकार में गाय की पूँछ जैसा है, सम्पूर्णतः जम्बूनद जातीय स्वर्ण से निर्मित है, स्वच्छ, सुकोमल एवं सुन्दर है। प्रथम बक्षस्कार First Chapter (33) 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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