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न और गतिशील ज्योतिष चक्र
शनि ग्रह ९०० योजन
• मंगल ग्रह ८९७ योजन गुरु ग्रह ८९४ योजन
शुक्र ग्रह ८९१ योजन •बुध ग्रह ८८८ योजन
शिला
यम
शनि
गुरु
तीसरी मेखला
वैनालय पर्वत
संपण द्वारा मित्र
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भूमि स्थान पर १०००० योजन विस्तार
दूसरी
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सूर्य
अभिजीत
नक्षत्र ८८४ योजन
चंद्र ८८० योजन
सूर्य ८०० योजन तारा ७९० योजन
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प्रवर्तक श्री सम
प्रवर्त्तक श्री अमर मुनि
प्रस्तुत सूत्र के सम्पादक श्री अमर मुनि जी, श्री वर्द्धमान स्थानकवासी जैन श्रमणसंघ के एक तेजस्वी संत हैं।
जिनवाणी के परम उपासक गुरुभक्त श्री अमर मुनि जी का जन्म वि. सं. १९९३ भादवा सुदि ५ (सन् १९३६), क्वेटा (बलूचिस्तान के मल्होत्रा परिवार में हुआ।
११ वर्ष की लघुवय में आप जैनागम रत्नाकर आचार्यसम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज की चरण-शरण में "आये और आचार्यदेव ने अपने प्रिय शिष्यानुशिष्य भण्डारी श्री पद्मचन्द्र जी महाराज को इस रत्न को तराशने/ सँवारने का दायित्व सौंपा। गुरुदेव श्री भण्डारी जी महाराज ने अमर को सचमुच अमरता के पथ पर बढ़ा दिया। आपने संस्कृत-प्राकृत-आगम-व्याकरण-साहित्य आदि का अध्ययन करके एक ओजस्वी प्रवचनकार, तेजस्वी धर्म-प्रचारक तथा जैन आगम साहित्य के अध्येता और व्याख्याता के रूप में जैन समाज में प्रसिद्धि प्राप्त की। आपश्री ने भगवती सूत्र (४ भाग), प्रश्नव्याकरण सूत्र (२ भाग), सूत्रकृतांग सूत्र (२ भाग) आदि आगमों की सुन्दर विस्तृत व्याख्याएँ की है।
Pravartak Shri Amar Muni The editor-in-chief of this Sutra, is a brilliant ascetic affliated with Shri Vardhaman Sthanakvasi Jain Shraman Sangh.
A great worshiper of the tenets of Jina and a devotee of his Guru, Shri Amar Muni Ji was born in a Malhotra family of Queta (Baluchistan) on Bhadva Sudi 5th in the year 1993V.
He took refuge with Jainagam Ratnakar Acharya Samrat Shri Atmaram Ji M. at an immature age of eleven years. Acharya Samrat entrusted his dear grand-disciple, Bhandari Shri Padmachandra Ji M. with the responsibility of cutting and polishing this raw gem. Gurudev Shri Bhandari Ji M. indeed, put Amar (immortal) on the path of immortality. He studied Sanskrit, Prakrit, Agams, Grammar and Literature to gain fame in the Jain society as an eloquent orator, an effective religions preacher and a scholar and interpreter of Jain Agam literature.
He has written nice and detailed commentaries of Bhagavati Sutra (in four parts), Prahsnavyakaran Sutra (in two parts), Sutrakritanga Sutra (in two parts) and some other Agams.