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________________ 5555555555555555555555555555555555559 नौवाँ द्वार-इसमें चन्द्र आदि देवों के विमानों को कितने देव वहन करते हैं, इस सम्बन्ध में वर्णन है। दसवाँ द्वार-कौन-कौन देव शीघ्र गतियुक्त हैं, कौन मन्द गतियुक्त हैं, इससे सम्बद्ध वर्णन इसमें है। ग्यारहवाँ द्वार-कौन देव अल्प ऋद्धि वैभवयुक्त हैं, कौन विपुल वैभवयुक्त हैं, इससे सम्बद्ध वर्णन इसमें है। बारहवाँ द्वार-इसमें ताराओं के पारस्परिक अन्तर-दूरी का वर्णन है। तेरहवाँ द्वार-इसमें चन्द्र आदि देवों की अग्रमहिषियों-प्रधान देवियों का वर्णन है। चौदहवाँ द्वार-इसमें आभ्यन्तर परिषद् एवं देवियों के साथ भोग-सामर्थ्य आदि का वर्णन है। पन्द्रहवाँ द्वार-इसमें ज्योतिष्क देवों के आयुष्य का वर्णन है। सोलहवाँ द्वार-इसमें ज्योतिष्क देवों के अल्पबहुत्व का वर्णन है। [प्र. ] भगवन् ! क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र तथा सूर्य के अधस्तन प्रदेशवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठात देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र एवं सूर्य से अणु-हीन हैं ? क्या कतिपय के उनके समान हैं ? क्षेत्र की अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के समश्रेणीवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय क्या द्युति, वैभव आदि में उनसे न्यून हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? क्षेत्र की ॐ अपेक्षा से चन्द्र आदि के विमानों के उपरितनप्रदेशवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों में से कतिपय म क्या द्युति, वैभव आदि में उनसे अणु-न्यून हैं ? क्या कतिपय उनके समान हैं ? [उ.] हाँ, गौतम ! ऐसा ही है। चन्द्र आदि के अधस्तन प्रदेशवर्ती, समश्रेणीवर्ती तथा उपरितन ऊ प्रदेशवर्ती ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों में कतिपय ऐसे हैं जो चन्द्र आदि से धुति, वैभव आदि में हीन या न्यून हैं, कतिपय ऐसे हैं जो उनके समान हैं। [प्र. ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से है ? [उ. ] गौतम ! पूर्वभव में उन ताराविमानों के अधिष्ठातृ देवों का अनशन आदि तप, आचरण, ॐ शौच आदि नियमानुपालन तथा ब्रह्मचर्य-सेवन जैसा-जैसा उच्च या अनुच्च होता है, तदनुरूप-उस तारतम्य के अनुसार उनमें द्युति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से हीनता, अधिकता या तुल्यता होती है। पर्वभव में उन देवों का तप. आचरण नियमानपालन, ब्रह्मचर्य-सेवन जैसे-जैसे उच्च या म अनुच्च नहीं होता, तदनुसार उनमें धुति, वैभव आदि की दृष्टि से चन्द्र आदि से न हीनता होती है, न 卐 तुल्यता होती है। 196. Sixteen Lectures (Dvaar) : First lecture-In it, there is the description of master gods of story abodes (Vimans) of the stars at the lowest space part, of space pants at same level and space pants at higher level on the context of sun and the moon. Second Lecture-There is the description of moon and its family. Third Lecture-In it, there is the detailed description of the distance s between Meru mountain and the orbit of stellar gods. | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (672) Jambudveep Prajnapti Sutra 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听555555555555$$$$$$听听听听听听听听四 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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