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________________ -1-1-1-1-1- 5555555555)555555555555555555555555555555555555558 555555555555555555555555555555555555 ॐ मूलो चउद्दस राइंदिआई णेइ, पुवासाढा पण्णरस राइंदिआई णेइ, उत्तरासाढा एगं राइंदिअंणेइ। तया णं वट्टाए समचउरंससंठाणसंठिआए णग्गोहपरिमण्डलाए सकायमणुरंगिआए छायाए सूरिए + अणुपरिअट्टइ। तस्स णं मासस्स जे से चरिमे दिवसे तंसि च णं दिवसंसि लेहट्ठाइं दो पयाई पोरिसी भवइ। ___ एतेसि णं पुव्ववण्णिआणं पयाणं इमा संगहणी, तं जहा जोगो देवयतारग्गगोत्तसंठाण-चन्दरविजोगो। कुलपुण्णिमअवमंसा णेआ छाया य बोद्धव्वा ॥१॥ १९५. [प्र. १ ] भगवन् ! चातुर्मासिक वर्षाकाल के प्रथम श्रावण मास कितने नक्षत्र परिसमाप्त । करते हैं ? अर्थात् श्रावण में कितने नक्षत्र आते हैं ? [उ. ] गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं, जैसे-(१) उत्तराषाढा, (२) अभिजित्, (३) श्रवण, तथा (४) धनिष्ठा। उत्तराषाढा नक्षत्र श्रावण मास के १४ अहोरात्र-दिन-रात, अभिजित् नक्षत्र ७ अहोरात्र, श्रवण : नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। (१४ + ७ + ८ + १ = ३० दिन-रात = १ मास) ___उस मास में सूर्य चार अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण परिभ्रमण करता है। ____ उस मास के अन्तिम दिन चार अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है, अर्थात् सूरज । के ताप में इतनी छाया पड़ती है-पौरुषी या प्रहर-प्रमाण दिन चढ़ता है। [प्र. २ ] भगवन् ! वर्षाकाल के दूसरे-भाद्रपद मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं ? [उ.] गौतम ! उसे चार नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-(१) धनिष्ठा. (२) शतभिषक्, म (३) पूर्वभाद्रपदा, तथा (४) उत्तरभाद्रपदा। धनिष्ठा नक्षत्र १४ अहोरात्र, शतभिषक् नक्षत्र ७ अहोरात्र, पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र ८ अहोरात्र तथा उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र १ अहोरात्र परिसमाप्त करता है। (१४ + ७ + ८ + १ = ३० दिन-रात = १ मास) ___ उस महीने में सूर्य आठ अंगुल अधिक पुरुषछायाप्रमाण अनुपर्यटन करता है। उस महीने के अन्तिम दिन आठ अंगुल अधिक दो पद पुरुषछायाप्रमाण पौरुषी होती है। [प्र. ३ ] भगवन् ! वर्षाकाल के तीसरे आश्विन-आसोज मास को कितने नक्षत्र परिसमाप्त फ़ करते हैं ? [उ. ] गौतम ! उसे तीन नक्षत्र परिसमाप्त करते हैं-(१) उत्तरभाद्रपदा, (२) रेवती, तथा म (३) अश्विनी। नानानानागाना111 ))))))) )))) | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (562) Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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