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________________ 5555555555555 गोवल्लायण २४ तेगिच्छायणे २५ अ कच्चायणे २६ हवइ मूले। ततो अ बझिआयण २७ वग्धावच्चे अ गोत्ताई २८॥४॥ [प्र.] एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंसंठिए पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! गोसीसावलिसंठिए पण्णत्ते। गाहा-गोसीसावलि १ काहार २ सउणि ३ पुष्फोवयार ४ वावी य ५-६ । णावा ७ आसक्खंधग ८ भग ९ छुरघरए १० अ सगडुद्धी ११॥१॥ मिगसीसावलि १२ रुहिरबिंदु १३ तुल्ल १४ वद्धमाणग १५ पडागा १६। पागारे १७ पलिअंके १८-१९ हत्थे २० मुहफुल्लए २१ चेव॥२॥ खीलग २२ दामणि २३ एगावली २४ अगयदंत २५ बिच्छुअअले य २६। गयविक्कमे २७ अ तत्तो सीहनिसीही अ २८ संठाणा॥३॥ १९२. [प्र. ] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का क्या गोत्र है ? [उ. ] गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का मौद्गलायन गोत्र है। गाथार्थ-प्रथम से अन्तिम नक्षत्र तक सब नक्षत्रों के गोत्र इस प्रकार हैं-(१) अभिजित् नक्षत्र का मौद्गलायन, (२) श्रवण नक्षत्र का सांख्यायन, (३) धनिष्ठा नक्षत्र का अग्र भाव, (४) शतभिषक् नक्षत्र का कण्णिलायन. (५) पर्वभाद्रपदा नक्षत्र का जातकर्ण, (६) उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र का धनंजय,' (७) रेवती नक्षत्र का पुष्यायन, (८) अश्विनी नक्षत्र का अश्वायन, (९) भरणी नक्षत्र का भार्गवेश, ॐ (१०) कृत्तिका नक्षत्र का अग्निवेश्य, (११) रोहिणी नक्षत्र का गौतम, (१२) मृगशिर नक्षत्र का __ भारद्वाज, (१३) आर्द्रा नक्षत्र का लोहित्यायन, (१४) पुनर्वसु नक्षत्र का वासिष्ठ, (१५) पुष्य नक्षत्र का अवमज्जायन, (१६) अश्लेषा नक्षत्र का माण्डव्यायन, (१७) मघा नक्षत्र का पिंगाय, (१८) पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र का गोवल्लायन, (१९) उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र का काश्यप, (२०) हस्त नक्षत्र का कौशिक, (२१) चित्रा नक्षत्र का दार्भायन, (२२) स्वाति नक्षत्र का चामरच्छायन, (२३) विशाखा नक्षत्र का शुंगायन, (२४) अनुराधा नक्षत्र का गोलव्यायन, (२५) ज्येष्ठा नक्षत्र का चिकित्सायन, (२६) मूल नक्षत्र का है कात्यायन, (२७) पूर्वाषाढा नक्षत्र का बाभ्रव्यायन, तथा (२८) उत्तराषाढा नक्षत्र का व्याघ्रापत्य गोत्र है। [प्र. ] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र का कैसा संस्थान-आकार है? [उ.] गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का संस्थान गोशीर्षावलि-गाय के मस्तक के पुद्गलों की दीर्घरूप-लम्बी श्रेणी जैसा है। गाथार्थ-प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं (१) अभिजित् नक्षत्र का गोशीर्षावलि के सदृश, (२) श्रवण नक्षत्र का कासार-तालाब के समान, 9 (३) धनिष्ठा नक्षत्र का पक्षी का कलेवर के सदृश, (४) शतभिषक् नक्षत्र का पुष्प-राशि के समान, 55555555555555555555555555555555555555555555555558 सप्तम वक्षस्कार (641) Seventh Chapter 555 55555555 $ $$$ $5555555FFFFFF5555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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