SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 602
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फफफफफफफफफफ नक्षत्रयोग CONSTELLATIONS CONNECTION WITH MOON १८९. [ प्र. ] (क) एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं कयरे णक्खत्ता जे णं सया चन्दस्स 5 दाहिणं जोअं जोएंति ? (ख) कयरे णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोअं जोएंति ? (ग) कयरे णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणवि उत्तरेणवि पमद्दपि जोगं जोएंति ? (घ) कयरे णक्खत्ता जे णं चंदस्स दाहिणेणंपि उत्तरेणवि पमद्दपि जोअं जोएंति ? (च) कयरे णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स पमदं जोअं जोएंति ? [उ. ] (क) गोयमा ! एतेसिं णं अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं तत्थ जे ते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणं जोअं जोएंति ते णं छ, तं जहा मियसिरं १ अद्द २ पुसो ३ ऽसिलेस ४ हत्थो ५ तहेव मूलो अ६ । बाहिरओ बाहिरमंडलस्स छप्पेते णक्खत्ता ॥१ ॥ (ख) तत्थ णं जे ते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स उत्तरेणं जोगं जोएंति ते णं बारस, तं जहा-सवणो, धणिट्ठा, सयभिसया, पुव्वभद्दवया, उत्तरभद्दवया, रेवई, अस्सिणी, भरणी, पुव्बाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी साई । (ग) तत्थ णं जे ते णक्खत्ता णं सया चंदस्स दाहिणओवि उत्तरओवि पमपि जोगं जोएंति ते णं सत्त, तं जहा - कत्तिआ, रोहिणी, पुणव्वसू, मघा, चित्ता, बिसाहा, अणुराहा । (घ) तत्थ णं जे ते णक्खत्ता जे णं सया चंदस्स दाहिणओवि पमद्दपि जोगं जोएंति, ताओ णं दुबे आसाढाओ। सव्वबाहिरए मंडले जोगं जोअंसु वा ३ । (च) तत्थ णं जे से णक्खत्ते जे णं सया चंदस्स पमद्दं जोएइ, सा णं एगा जेट्ठा इति । १८९. [ प्र. ] (क) भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्र के दक्षिण में- दक्षिण दिशा में अवस्थित होते हुए योग करते हैं - चन्द्रमा के साथ सम्बन्ध करते हैं ? (ख) कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा चन्द्रमा के उत्तर में अवस्थित होते हुए योग करते हैं ? (ग) कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिण में भी, उत्तर में भी, नक्षत्र - विमानों को चीरकर भी योग करते हैं ? [घ] कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो चन्द्रमा के दक्षिण में भी नक्षत्र - विमानों को चीरकर भी योग करते हैं ? (च) कितने नक्षत्र ऐसे हैं, जो सदा नक्षत्र - विमानों को चीरकर चन्द्रमा से योग करते हैं ? हुए [ उ. ] (क) गौतम ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्र के दक्षिण में अवस्थित होते योग करते हैं, वे छह हैं, जैसे जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र Jain Education International (536) ahhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh a Jambudveep Prajnapti Sutra For Private & Personal Use Only 4 4 கழகமிகமி*தமிழ**********************தE ५ www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy