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विसमं पवालिणो, परिणमन्ति अणुऊसु दिंति पुप्फफलं । वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं ३ कम्मं ॥ ३ ॥ पुढवि - दगाणं च रसं, पुष्फ-फलाणं च देइ ४ आइच्चो । अप्पेण वि वासेणं, सम्मं निष्फज्जए सस्सं ॥४॥ आइच - तेअ-तविआ, खणलवदिवसा उऊ परिणमन्ति । पूरेइ अ णिण्णथले, तमाहु ५ अभिवद्धिअं जाण ॥५ ॥ [प्र. ८ ] सणिच्छर-संवच्छरे णं भन्ते कतिविहे पण्णत्ते ? [ उ. ] गोयमा ! अट्ठाविसइविहे पण्णत्ते, तं जहा
अभिई सवणे घणिट्ठा, सयभिसया दो अ होंति भद्दवया । रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिअ तह रोहिणी चेव ॥ १ ॥
(मिगसिरं, अद्दा, पुण्णवसू, पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुव्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता, साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुव्वाआसाढा) उत्तराओ आसाढाओ।
जं वा सणिच्चरे महग्गहे तीसाए संवच्छरेहिं सव्वं णक्खत्तमण्डलं समाणेइ सेत्तं सणिच्छर
संवच्छरे ॥
१८४. [ प्र. १ ] भगवन् ! संवत्सर कितने होते हैं ?
[ उ. ] गौतम ! संवत्सर पाँच बतलाये हैं, जैसे- ( 9 ) नक्षत्र - संवत्सर, (२) युग - संवत्सर, (३) प्रमाण - संवत्सर, (४) लक्षण - संवत्सर, तथा ( ५ ) शनैश्चर - संवत्सर ।
[प्र. २ ] भगवन् ! नक्षत्र - संवत्सर कितने प्रकार का होता है ?
[.] गौतम ! नक्षत्र - संवत्सर बारह प्रकार का है, जैसे- (१) श्रावण, (२) भाद्रपद, (३) आसोज, (४) कार्तिक, (५) मिगसर, (६) पौष, (७) माघ, (८) फाल्गुन, (९) चैत्र, (१०) वैशाख, (११) ज्येष्ठ, तथा (१२) आषाढ़ । अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो ५ सर्व-डल का परिसमापन करता है उन्हें पार कर जाता है, वह कालविशेष भी नक्षत्रसंवत्सर कहा जाता है।
[प्र. ३ ] भगवन् ! युग-संवत्सर कितने प्रकार का होता है ?
[ उ. ] गौतम ! युग-संवत्सर पाँच प्रकार का होता है जैसे - (१) चन्द्र-संवत्सर, (२) चन्द्रसंवत्सर, (३) अभिवर्द्धित - संवत्सर, (४) चन्द्र - संवत्सर, तथा (५) अभिवर्द्धित-संवत्सर ।
[प्र. ४ ] भगवन् ! प्रथम चन्द्र-संवत्सर के कितने पर्व-पक्ष होते हैं ?
[ उ. ] गौतम ! प्रथम चन्द्र-संवत्सर के चौबीस पर्व होते हैं । [प्र.५] भगवन् ! द्वितीय चन्द्र-संवत्सर के कितने पर्व होते हैं ?
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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