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3 [उ. ] गौतम ! ऊर्ध्व भाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधो भाग में १,८०० योजन क्षेत्र को तथा म तिर्यक् भाग में ४७,२६३२० योजन क्षेत्र को अपने तेज से तपाते हैं-व्याप्त करते हैं।
172. [Q. ] Reverend Sir ! In Jambu island, how much area in the upper region does the sun heat with its warmth. How much are is heated in the lower region and how much area is heated in the middle zone ? ___ [Ans. ] Gautam ! It spreads its heat upto 100 yojan upwards, upto 4 1,800 yojan downwards and upto 47,263 yojan in the levelled area with
its solar power. उत्पत्ति स्थान PLACE OF BIRTH (ORIGIN)
१७३. [प्र. ] अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरिअ-गहगण-णक्खत्त-तारारूवा णं भंते ! देवा किं उद्घोववण्णगा कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा, चारोववण्णगा, चारदिईआ, गइरइआ, ॥ गइसमावण्णगा ?
[उ. ] गोयमा ! अंतो णं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चन्दिमसूरिअ-(गहगणणक्खत्त)-तारासवे ते णं देवा णो उद्घोववण्णगा णो कप्पोववण्णगा, विमाणोववण्णगा, चारोववण्णगा, णो चारट्टिईआ, गइरइआ है, गइसमावण्णगा। ___ उद्धीमुहकलंबुआपुष्फसंठाणसंठिएहिं, जोअणसाहस्सिएहिं तावखेत्तेहिं साहस्सिआहिं वेउबिआहिं वाहिरहिं परिसाहि महयाहय-पट्ट-गीयवाइअ-तंतीतलताल-तुडिअघण-मुइंगपडुप्पवाइअरवेणं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणा महया उक्किट्ठसीहणायबोल-कलकलरवेणं अच्छं पव्वयरायं पयाहिणावत्तमण्डलचारं मेरे अणुपरिअझैति १४।
१७३. [प्र. ] भगवन् ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती (अढ़ाई द्वीप अन्तवर्ती) चन्द्र, सूर्य, नक्षत्र एवं तारे-ॐ ये ज्योतिष्क देव क्या ऊोपपन्न हैं-सौधर्म आदि बारह कल्पों से ऊपर ग्रैवेयक तथा अनुत्तर विमानों के में उत्पन्न हैं-क्या कल्पातीत हैं ? क्या वे कल्पातीत हैं ? क्या वे कल्पोपपन्न हैं-ज्योतिष्क देव-सम्बद्ध विमानों में उत्पन्न हैं ? क्या वे चारोपपन्न हैं-मण्डल गतिपूर्वक परिभ्रमण से युक्त हैं ? क्या वे चारस्थितिक
गति के अभावयुक्त हैं-परिभ्रमणरहित हैं ? क्या वे गतिरतिक हैं-गति में रति-आसक्ति या प्रीति लिए के हैं ? क्या गति समापन्न हैं-गतियुक्त हैं?
[उ. ] गौतम ! मानुषोत्तर पर्वतवर्ती चन्द्र, सूर्य (ग्रह, नक्षत्र), तारे-ज्योतिष्क देव ऊोपपन्न । म नहीं हैं, कल्पोपपन्न नहीं हैं। वे विमानोत्पन्न हैं, चारोपपन्न हैं, चारस्थितिक नहीं हैं, गतिरतिक हैं, + गतिसमापन्न हैं।
ऊर्ध्वमुखी कदम्ब पुष्प के आकार में संस्थित सहस्रों योजनपर्यन्त चन्द्रसूर्यापेक्षया तापक्षेत्रयुक्त, 5 वैक्रियलब्धियुक्त-नाना प्रकार के विकुर्वित रूप धारण करने में सक्षम, नाट्य, गीत, वादन आदि में ॐ निपुणता के कारण आभियोगिक कर्म करने में तत्पर, सहस्रों बाह्य परिषदों से संपरिवृत्त वे ज्योतिष्क :
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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