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________________ 855555555555555555555555555555555558 # आयामविक्खम्भेणं, साइरेगाइं अट्ठजोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं जाव जिणपडिमावण्णओ देवच्छन्दगस्स जाव : धूवकडुच्छुगा। मन्दरचूलिआए णं पुरथिमेणं पंडगवणं पण्णासं जोअणाई ओगाहित्ता एत्थ णं महं एगे भवणे पण्णत्ते। एवं जच्चेव सोमणसे पुष्ववण्णिओ गमो भवणाणं पुक्खरिणीणं पासायवडेंसगाण य सो चेव णेअव्यो जाव के सक्कीसाणवडेंसगा तेणं चेव परिमाणेणं। म १३५. [प्र. ] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर पण्डक वन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? 5 [उ. ] गौतम ! सौमनस वन के बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग से ३६,००० योजन ऊपर के + जाने पर मन्दर पर्वत के शिखर पर पण्डक वन नामक वन बतलाया गया है। चक्रवाल विष्कम्भ दृष्टि से ॐ वह ४९४ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार जैसा उसका आकार है। वह मन्दर पर्वत की ज के चूलिका को चारों ओर से परिवेष्टित कर स्थित है। उसकी परिधि कुछ अधिक ३,१६२ योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा घिरा है। काले, नीले आदि पत्तों से युक्त है। देव+ देवियाँ वहाँ आश्रय लेते हैं। # पण्डक वन के बीचोंबीच मन्दर चूलिका (चोटी) नामक चूलिका बतलाई गई है। वह चालीस योजन ॥ है ऊँची है। वह मूल में बारह योजन, मध्य में आठ योजन तथा ऊपर चार योजन चौड़ी है। मूल में उसकी परिधि कुछ अधिक ३७ योजन, बीच में कुछ अधिक २५ योजन तथा ऊपर कुछ अधिक १२ योजन है। वह मूल में चौड़ी, मध्य में सैकड़ी तथा ऊपर पतली है। उसका आकार गाय के पूँछ के आकार-सदृश + है। वह सर्वथा वैडूर्य (नीलम) रत्नमय है, उज्ज्वल है। वह एक पद्मवरवेदिका (तथा एक वनखण्ड) द्वारा के चारों ओर से संपरिवृत है। # ऊपर बहुत समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है। उसके बीच में सिद्धायतन है। वह एक कोश लम्बा, + आधा कोश चौड़ा, कुछ कम एक कोश ऊँचा है, सैकड़ों खम्भों पर टिका है। उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन दरवाजे बतलाये गये हैं। वे दरवाजे आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े हैं। उनके के प्रवेश-मार्ग भी उतने ही हैं। उस (सिद्धायतन) के सफेद, उत्तम स्वर्णमय शिखर हैं। आगे वनमालाएँ, भूमिभाग आदि से सम्बद्ध वर्णन पूर्ववत् है। भी उसके बीचोंबीच एक विशाल मणिपीठिका बतलाई गई है। वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है। उस मणिपीठिका के ऊपर देवासन है। वह आठ योजन लम्बा-चौड़ा है, कुछ अधिक आठ योजन ऊँचा है। जिन-प्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। की मन्दर पर्वत की चूलिका के पूर्व में पण्डक वन में पचास योजन जाने पर एक विशाल भवन आता में है। सौमनस वन के भवन, पुष्करिणियाँ, प्रासाद आदि के प्रमाण, विस्तार आदि का जैसा वर्णन है, वैसा ही यहाँ समझना चाहिए। शक्रेन्द्र एवं ईशानेन्द्र वहाँ के अधिष्ठायक देव हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् है। चतुर्थ वक्षस्कार (375) Fourth Chapter 555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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