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In the west of the mansion located in the north, in the east of grand palace located in the north-west, on Sagarchitrakoot, goddess Vajrasena F resides. Her capital is in the north.
In the east of the mansion located in the north, in the west of grand palace located in the north-east in Vajrakoot, Balahaka goddess resides. F Her capital is in the north.
[Ans.] Gautam ! Balkoot is located in the north-east of Mandar
(Ans.] Gautam ! Balakoot is located in the north-east of Mandar mountain in Nandan forest. Its size, the size of its capital and its extent is similar to Harissahkoot and its capital. The only difference is that its master is god Bal. His capital is in north-east. (३) सौमनस बन SAUMANAS FOREST
१३४. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! मन्दरए पब्बए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! णन्दणवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ अद्धतेवढि जोअणसहस्साई उद्धं । उप्पइत्ता एत्थ णं मन्दरे पव्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते। पंचजोयणसयाई चक्कवालविक्खम्भेणं,'
वट्टे, वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मन्दरं पव्वयं समन्ता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ। चत्तारि जोअणसहस्साई, । दुण्णि य बावत्तरे जोअणसए अट्ठ य इक्कारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिविक्खम्भेणं, तेरस
जोअणसहस्साइं पंच य एक्कारे जोअणसए छच्च इक्कारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिण्णि है जोअणसहस्साइं दुण्णि अ बावत्तरे जोअण-सए अट्ठ य इक्कारसभाए जोअणस्स अंतो गिरिविक्खम्भेणं, दस जोअणसहस्साई तिण्णि अ अउणापण्णे जोअणसए तिण्णि अ इक्कारसभाए जोअणस्स अंतो
गिरिपरिरएणंति। से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं सवओ समन्ता संपरिक्खित्ते वण्णओ, । किण्हे किण्होभासे जाव आसयन्ति। एवं कूडवज्जा सच्चेव णन्दणवणवत्तवया भाणियव्वा, तं चेव
ओगाहिऊण जाव पासायवडेंसगा सक्कीसाणाणंति।
१३४. [प्र.] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर सौमनस वन नामक वन कहाँ है ?
[उ. ] गौतम ! नन्दन वन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से ६२,५०० योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत पर सौमनस नामक वन आता है। वह चक्रवाल-विष्कम्भ (गोलाई में) की दृष्टि से ५००) योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है। वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है। वह पर्वत से बाहर ४,२७२६० योजन विस्तीर्ण है। पर्वत से बाहर उसकी परिधि १३,५११६ योजन है। वह पर्वत के भीतरी भाग में ३,२७२०, योजन विस्तीर्ण है। पर्वत के भीतरी भाग से संलग्न है उसकी परिधि १०,३४९,३, योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। विस्तृत वर्णन पूर्ववत् है। वह वन काले, नीले आदि पत्तों से-वैसे ही वृक्षों से, लताओं से आपूर्ण है। वहाँ देव-देवियाँ आश्रय लेते हैं। कूटों के अतिरिक्त और सारा वर्णन नन्दन वन के सदृश है। ॥ उसमें आगे शक्रेन्द्र तथा ईशानेन्द्र के उत्तम प्रासाद हैं।
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चतुर्थ वक्षस्कार
(373)
Fourth Chapter
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