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________________ 卐555555555555555)))))))))))))))))55555555555 १३२. [प्र. २ ] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर कितने वन हैं ? [उ. ] गौतम ! वहाँ चार वन हैं-(१) भद्रशाल वन, (२) नन्दन वन, (३) सौमनस वन, तथा ॥ (४) पंडक वन। [प्र. ] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर भद्रशाल वन नामक वन कहाँ पर है ? [उ. ] गौतम ! मन्दर पर्वत पर उसके भूमिभाग पर भद्रशाल नामक वन है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा 3 एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह सौमनस, विद्युत्प्रभ, गन्धमादन तथा माल्यवान् नामक वक्षस्कार पर्वतों के के द्वारा सीता तथा सीतोदा नामक महानदियों द्वारा आठ भागों में विभक्त है। वह मन्दर पर्वत के 5 पूर्व-पश्चिम बाईस-बाईस हजार योजन लम्बा है, उत्तर-दक्षिण अढ़ाई सौ-अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है। ॐ वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है, दोनों का वर्णन 卐 पूर्ववत् है। वह काले, नीले पत्तों से आच्छन्न है, वैसी आभा से युक्त है। देव-देवियाँ वहाँ आश्रय लेते हैं, विश्राम लेते हैं-इत्यादि वर्णन पूर्ववत् है। म मन्दर पर्वत के पूर्व में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर एक विशाल सिद्धायतन आता है। वह पचास योजन लम्बा है, पच्चीस योजन चौड़ा है तथा छत्तीस योजन ऊँचा है। वह सैकड़ों खम्भों पर ॐ टिका है। उसका वर्णन पूर्ववत् है। उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार बतलाये गये हैं। वे द्वार + आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश मार्ग भी उतने ही हैं। उनके शिखर श्वेत हैं, उत्तम स्वर्ण निर्मित हैं। यहाँ से सम्बद्ध वनमाला, भूमिभाग आदि का सारा वर्णन पूर्वानुसार है। म उसके बीचोंबीच एक विशाल मणिपीठिका है। वह आठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, उज्ज्वल है। उस मणिपीठिका के ऊपर देवच्छन्दक-देवासन है। वह आठ ॐ योजन लम्बा-चौड़ा है। वह कुछ अधिक आठ योजन ऊँचा है। जिनप्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्ववत् है। ॐ मन्दर पर्वत के दक्षिण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर वहाँ उस (मन्दर) की चारों म दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं। मन्दर पर्वत के उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा तथा कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ आती हैं। वे पचास ॐ योजन लम्बी, पच्चीस योजन चौड़ी तथा दस योजन जमीन में गहरी हैं। वहाँ पद्मवरवेदिका, वनखण्ड म तथा तोरण द्वार आदि का वर्णन पूर्वानुसार है। ॐ उन पुष्करिणियों के बीच में देवराज ईशानेन्द्र का उत्तम प्रासाद है। वह पाँच सौ योजन ऊँचा और + अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है। सम्बद्ध सामग्री सहित उस प्रासाद का विस्तृत वर्णन पूर्वानुसार है। .... मन्दर पर्वत के दक्षिण-पूर्व में-आग्नेय कोण में उत्पलगुल्मा, नलिना, उत्पला तथा उत्पलोज्ज्वला नामक पुष्करिणियाँ हैं, उनका प्रमाण पूर्वानुसार है। उनके बीच में उत्तम प्रासाद हैं। देवराज शक्रेन्द्र वहाँ सपरिवार रहता है। मन्दर पर्वत के दक्षिण-पश्चिम में-नैऋत्य कोण में भुंगा, भृगनिभा, अंजना एवं ऊ अंजनप्रभा नामक पुष्करिणियाँ हैं, जिनका प्रमाण, विस्तार पूर्वानुसार है। शक्रेन्द्र वहाँ का अधिष्ठायक ॥ म देव है। सिंहासन पर्यन्त सारा वर्णन पूर्ववत् है। मन्दर पर्वत के उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में श्रीकान्ता, | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (364) Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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