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45 peaks—(1) Siddhayatan peak, (2) Ekshail peak, (3) Pushkalavart peak, 卐 and (4) Pushkalavati peak. They are 500 yojan high. A very prosperous
celestial being Ekshail resides on Ekshail Vakshaskar mountain. (८) पुष्कलावती विजय PUSHKALAVATI VIJAY
१२१. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं चक्कवट्टिविजए पण्णत्ते ? _[उ.] गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, उत्तरिल्लस्स सीआमुहवणस्स पच्चत्थिमेणं, एगसेलस्स वक्खारपव्वयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं महाविदेहे वासे पुक्खलावई णामं विजए, पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए एवं जहा कच्छविजयस्स जाव पुक्खलावई अ इत्थ देवे परिवसइ, एएणडेणं.। म
१२१. [प्र. ] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में पुष्कलावती नामक चक्रवर्ति-विजय कहाँ पर है ?
[उ. ] गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, सीता महानदी के उत्तर में, उत्तरवर्ती सीतामुख ॐ वन के पश्चिम में, एकशैल वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पुष्कलावती नामक
विजय है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है-इत्यादि सारा वर्णन कच्छ विजय की ज्यों है। उसमें पुष्कलावती नामक देव निवास करता है। इस कारण उसे पुष्कलावती विजय कहा जाता है। ___121. [Q.] Reverend Sir ! Where is Pushkalavati Chakravarti Vijay located in Mahavideh region ?
(A.) Gautam ! In the south of Neelavan Varshadhar mountain, in the 41 north of Sita river, in the west of Sitamukh forest and in the east of $ Ekshail Vakshaskar mountain, Pushkalavati Vijay is located in Mahavideh region. Pushkalavati deva resides there. So it is called Pushkalavati Vijay. उत्तरी शीतामुख वन NORTH SITAMUKH FOREST
१२२. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे सीआए महाणईए उत्तरिल्ले सीआमुहवणे णामं वणे पण्णते?
[उ.] गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं, ॐ पुक्खलावइचक्कवट्टिविजयस्स पुरथिमेणं, एत्थ णं सीआमुहवणे णामं वणे पण्णत्ते। उत्तरदाहिणायए,
पाईणपडीणवित्थिण्णे, सोलसजोअणसहस्साइं पंच य बाणउए जोअणसए दोण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स आयामेणं, सीआए महाणईए अन्तेणं दो जोअणसहस्साई नव य वावीसे जोअणसए विक्खम्भेणं। तयणंतरं च णं मायाए मायाए परिहायमाणे परिहायमाण णीलवन्तवासहरपब्वयंतेणं एगं एगूणवीसइभागं जोअणस्स विक्खम्भेणंति। से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसण्डेणं संपरिक्खित्तं वण्णओ सीआमुहवणस्स जाव देवा आसयन्ति, एवं उत्तरिल्लं पासं समत्तं। विजया भणिआ। रायहाणीओ
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म इमाओ
चतुर्थ वक्षस्कार
(345)
Fourth Chapter
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