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________________ (३) महाकच्छ विजय MAHAKUTCHH VIAY ११३. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजये पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! णीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उत्तरेणं, पम्हकूडस्स वक्खारपव्वयस्स पच्चत्थिमेणं, गाहावईए महाणईए पुरथिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे महाकच्छे णामं विजए पण्णत्ते, सेसं जहा कच्छविजयस्स जाव महाकच्छे इत्थ देवे महिड्डीए अट्ठो अ भाणिअव्वो। ११३. [प्र. ] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामक विजय कहाँ पर है? [उ. ] गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, सीता महानदी के उत्तर में, पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ग्राहावती महानदी के पूर्व में महाविदेह क्षेत्र में महाकच्छ नामक विजय है। बाकी का सारा वर्णन कच्छ विजय की ज्यों है। यहाँ महाकच्छ नामक परम ऋद्धिशाली देव रहता है। 113. (Q.) Reverend Sir ! Where is Mahakutchh Vijay located in Mahavideh region ? (A.) Gautam ! In Mahavideh region, Mahakutchh Vijay is located in the east of Grahavati river and in the west of Padmakoot Vakshaskar mountain. It is in the south of Neelavan Varshadhar mountain and in the east of Sita river. The remaining description is similar to that of Kutchh Vijay. Mahakutchh, a prosperous deva, resides here. पद्मकूट वक्षस्कार पर्वत PADMAKOOT VAKSHASKAR MOUNTAIN ११४. [प्र. ] कहि णं भन्ते ! महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपब्बए पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! णीलवन्तस्स दक्खिणेणं, सीआए महाणईए उत्तरेणं, महाकच्छस्स पुरथिमेणं, कच्छावईए पच्चत्थिमेणं एत्थ णं महाविदेहे वासे पम्हकूडे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते, उत्तरदाहिणायए पाईणपडीणवित्थिण्णे। सेसं जहा चित्तकूडस्स जाव आसयन्ति। पम्हकूडे चत्तारि कूडा पण्णत्ता, तं जहा १. सिद्धाययणकूडे, २. पम्हकूडे, ३. महाकच्छकूडे, ४. कच्छवइकूडे एवं जाव अट्ठो। पम्हकूडे इत्थ देवे महद्धिए पलिओवमठिईए परिवसइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ। ११४. [प्र. ] भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र के अन्तर्गत पद्मकूट नामक वक्षस्कार पर्वत कहाँ पर स्थित है ? [उ. ] गौतम ! नीलवान् वक्षस्कार पर्वत के दक्षिण में सीता महानदी के उत्तर में, महाकच्छ विजय के पूर्व में, कच्छावती विजय के पश्चिम में महाविदेह क्षेत्र में पद्मकूट नामक वक्षस्कार पर्वत है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है, पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। बाकी का सारा वर्णन चित्रकूट की ज्यों है। पद्मकूट के चार कूट-शिखर हैं (१) सिद्धायतन कूट, (२) पद्म कूट, (३) महाकच्छ कूट, तथा ४. कच्छावती कूट। इनका वर्णन पूर्वानुरूप है। यहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्य वाला पद्मकूट नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण यह पद्मकूट कहलाता है। चतुर्थ वक्षस्कार (339) Fourth Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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