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________________ फ्र फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ 卐 5 5 [ प्र. ] कहि णं भन्ते ! उत्तरद्धकच्छे विजए गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते ? [ उ. ] गोयमा ! चित्तकूडस्स वक्खारपव्ययस्स पच्चत्थिमेणं, उसहकूडस्स पव्वयस्स पुरत्थिमेणं, नीलवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे एत्थ णं उत्तरद्धकच्छे गंगाकुण्डे णामं कुण्डे पण्णत्ते । सट्ठि जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, तहेव जहा सिंधू जाव वणसडेण य संपरिक्खित्ता। [प्र.] से केणट्ठणं भन्ते ! एवं वुच्चइ कच्छे विजए कच्छे विजए ? [उ. ] गोयमा ! कच्छे विजए वेअद्धस्स पव्वयस्स दाहिणेणं, सीआए महाणईए उत्तरेणं, गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं दाहिणद्धकच्छविजयस्स बहुमज्झदेसभाए, एत्थ णं खेमा णामं रायहाणी पण्णत्ता, विणीआरायहाणीसरिसा भाणिअव्वा । तत्थ णं खेमाए रायहाणीए कच्छे राया समुप्पज्जइ, महया हिमवन्त जाव सव्वं भरहोवमं भाणिअव्वं निक्खमणवज्जं सेसं सव्वं भाणिअब्बं जाव भुंज माणुस्सए सुहे । कच्छणामधेज्जे अ कच्छे इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्टिईए परिवसइ, से एणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ कच्छे विजए कच्छे विजए जाव णिच्चे | णामं [प्र. २ ] भगवन् ! जम्बू द्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छ विजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ पर है ? [ उ. ] गौतम ! माल्यवान् वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में, ऋषभकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब में - मेखलारूप मध्य भाग में ढलान में, जम्बू द्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में उत्तरार्धकच्छ विजय में सिन्धुकुण्ड नामक कुण्ड है। वह साठ योजन लम्बा-चौड़ा है। भवन, राजधानी आदि सारा वर्णन भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धुकुण्ड के सदृश है। उस सिन्धुकुण्ड के दक्षिणी तोरण से सिन्धु महानदी निकलती है। उत्तरार्धकच्छ विजय में बहती है। उसमें वहाँ ७,००० नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे आपूर्ण होकर नीचे तिमिस्रगुहा से होती हुई वैताढ्य पर्वत को चीरकर दक्षिणार्धकच्छ विजय में जाती है । वहाँ १४,००० नदियों से युक्त होकर वह दक्षिण में शीता महानदी में मिल जाती है। सिन्धु महानदी अपने उद्गम तथा संगम पर विस्तार में भरत क्षेत्रवर्ती सिन्धु महानदी के सदृश है। वह दो वनखण्डों द्वारा घिरी है - यहाँ तक का सारा वर्णन पूर्ववत् है । [प्र. ] भगवन् ! उत्तरार्धकच्छ विजय में ऋषभकूट नामक पर्वत कहाँ है ? [उ. ] गौतम ! सिन्धुकूट के पूर्व में, गंगाकूट के पश्चिम में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में, उत्तरार्धकच्छ विजय में ऋषभकूट नामक पर्वत है। वह आठ योजन ऊँचा है। उसका प्रमाण, विस्तार, राजधानी पर्यन्त वर्णन पूर्ववत् है । इतना अन्तर है- उसकी राजधानी उत्तर में है । [प्र.] भगवन् ! उत्तरार्धकच्छ विजय में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड कहाँ पर है ? [ उ. ] गौतम ! चित्रकूट वक्षस्कार पर्वत के पश्चिम में, ऋषभकूट पर्वत के पूर्व में, नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिणी ढलान में उत्तरार्ध कच्छ में गंगाकुण्ड नामक कुण्ड है। वह ६० योजन लम्बा-चौड़ा है। एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है - यहाँ तक का अवशेष वर्णन सिन्धुकुण्ड सदृश है। वह फ्र चतुर्थ वक्षस्कार (333) Jain Education International 25 55555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55 5955 55955 For Private & Personal Use Only Fourth Chapter फफफफफफफफफफफफ www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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