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अद्धसोलसजोअणाई
सपरिवारा, एवं पासायपंतीओ एक्कतीसं जोअणाई कोसं च उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगाई आयामविक्खंभेणं । बिइ अपासायपंती ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई अद्धसोलसजोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्धट्ठमाइं जोअणाई आयामविक्खंभेणं। तइअपासायपंती ते णं पासायवडेंसया साइरेगाई अद्धट्ठमाई जोअणाई उद्धं उच्चत्तेणं, साइरेगाई अद्भुजो अणाई आयामविक्खंभेणं, वण्णओ सीहासणा सपरिवारा।
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१०५. [ प्र. २ ] भगवन् ! यमक देवों की यमिका नामक राजधानियाँ कहाँ हैं ?
[उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत मन्दर पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बूद्वीप में १२,००० योजन जाने पर यमक देवों की यमिका नामक राजधानियाँ आती हैं। वे १२,००० योजन लम्बी-चौड़ी हैं। उनकी परिधि कुछ अधिक ३७,९४८ योजन है। प्रत्येक राजधानी प्राकार - परकोटे से परिवेष्टित हैंवे प्राकार ३७३ योजन ऊँचे हैं। वे मूल में १२३ योजन, मध्य में ६ योजन १ कोस तथा ऊपर ३ योजन आधा को चौड़े हैं। वे मूल में चौड़े, बीच में सँकड़े तथा ऊपर पतले हैं।
बाहर से कोनों के
अनुपलक्षित रहने के करण - गोलाकार तथा भीतर से कोनों के उपलक्षित रहने से चौकोर प्रतीत होते हैं। वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं। वे नाना प्रकार के पंचरंगे रत्नों से निर्मित कपिशीर्षकों-बन्दर के मस्तक के आकार के कंगूरों द्वारा सुशोभित हैं। वे कंगूरे आधा कोस ऊँचे तथा पाँच सौ धनुष मोटे हैं, सर्वरत्नमय उज्ज्वल हैं।
यमिका नामक राजधानियों के प्रत्येक पार्श्व में सवा सौ- सवा सौ द्वार हैं। वे द्वार ६२३ योजन ऊँचे हैं । ३१ योजन १ कोस चौड़े हैं। उनके प्रवेश मार्ग भी उतने ही प्रमाण के हैं। उज्ज्वल, उत्तम स्वर्णमय स्तूपिका, द्वार, अष्ट मंगलक आदि से सम्बद्ध समस्त वक्तव्यता राजप्रश्नीयसूत्र में विमान - वर्णन के अन्तर्गत
आई वक्तव्यता के अनुरूप है।
यमिका राजधानियों की चारों दिशाओं में पाँच-पाँच सौ योजन के व्यवधान से - ( १ ) अशोकवन,
(२) सप्तपर्णवन, (३) चम्पकवन, तथा (४) आम्रवन - ये चार वनखण्ड हैं। ये वनखण्ड कुछ अधिक १२,००० योजन लम्बे तथा ५०० योजन चौड़े हैं। प्रत्येक वनखण्ड प्राकार द्वारा परिवेष्टित है। वनखण्ड, भूमि, उत्तम प्रासाद आदि पूर्व वर्णन के अनुरूप हैं।
यमिका राजधानियों में से प्रत्येक में बहुत समतल सुन्दर भूमिभाग हैं। उनका वर्णन पूर्ववत् है। उन बहुत समतल, रमणीय भूमिभागों के बीचोंबीच दो प्रासाद- पीठिकाएँ हैं । वे १,२०० योजन लम्बी-चौड़ी हैं। उनकी परिधि ३,७९५ योजन है। वे आधा कोस मोटी हैं। वे सम्पूर्णतः उत्तम जम्बूनद स्वर्णमय हैं, उज्ज्वल हैं। उनमें से प्रत्येक एक-एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक-एक वनखण्ड द्वारा परिवेष्टित है। 5 वनखण्ड, त्रिसोपानक, चारों दिशाओं में चार तोरण, भूमिभाग आदि से सम्बद्ध वर्णन पूर्ववत् है।
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उसके बीचोंबीच एक उत्तम प्रासाद है । वह ६२ ३ योजन ऊँचा तथा ३१ योजन १ कोस लम्बा-चौड़ा है। उसके ऊपर के हिस्से, भूमिभाग - नीचे के हिस्से, सम्बद्ध सामग्री सहित सिंहासन, प्रासादपंक्तियाँ - मुख्य प्रासाद को चारों ओर से परिवेष्टित करने वाली महलों की कतारें इत्यादि अन्यत्र वर्णनानुसार हैं । प्रासाद-पंक्तियों में से प्रथम पंक्ति के प्रासाद ३१ योजन १ कोस ऊँचे हैं। वे कुछ अधिक
जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(308)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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