________________
)))
)
)))
)
))
))
)
)
8555555555555555555555555555555555555
वह उत्तर-दक्षिण लम्बा और पूर्व-पश्चिम चौड़ा है। उसकी लम्बाई ३०,२०९,६ योजन है। वह ॐ नीलवान् वर्षधर पर्वत के पास ४०० योजन ऊँचा है, ४०० कोस जमीन में गहरा है, ५०० योजन
चौड़ा है। उसके अनन्तर क्रमशः उसकी ऊँचाई तथा गहराई बढ़ती जाती है, चौड़ाई घटती जाती है। यों वह मन्दर पर्वत के पास ५०० योजन ऊँचा हो जाता है, ५०० कोस गहरा हो जाता है। उसकी चौड़ाई अंगुल के असंख्यातवें भाग जितनी रह जाती है। उसका आकार हाथी के दाँत जैसा है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है। दोनों ओर दो पद्मवरवेदिका तथा दो वनखण्ड हैं।
गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के ऊपर बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है। उसकी चोटियों पर अनेक देव-देवियाँ निवास करते हैं।
[प्र. ] भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत के कितने कूट हैं ?
[उ. ] गौतम ! उसके सात कूट हैं-(१) सिद्धायतन कूट, (२) गन्धमादन कूट, (३) गन्धिलावती # कूट, (४) उत्तरकुरु कूट, (५) स्फटिक कूट, (६) लोहिताक्ष कूट, तथा (७) आनन्द कूट।
[प्र.] भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट कहाँ पर है ?
[उ. ] गौतन'! मन्दर पर्वत के उत्तर-पश्चिम में, गन्धमादन कूट के दक्षिण-पूर्व में गन्धमादन ॐ वक्षस्कार पर्वत पर सिद्धायतन कूट है। चुल्ल हिमवान् पर्वत पर सिद्धायतन कूट का जो प्रमाण है, वही 卐 इन सब कूटों का प्रमाण है। तीन कूट विदिशाओं में-(१) सिद्धायतन कूट मन्दर के वायव्य कोण में,
(२) गन्धमादन कूट सिद्धायतन कूट के वायव्य कोण में, तथा (३) गन्धिलावती कूट गन्धमादन कूट के ॐ वायव्य कोण में है, (४) चौथा उत्तरकुरु कूट तीसरे गन्धिलावती कूट के वायव्य कोण में, तथा : म (५) पाँचवें स्फटिक कूट के दक्षिण में है। इनके सिवाय बाकी के तीन-(६) स्फटिक कूट, (७) लोहिताक्ष, - कूट, एवं (८) आनन्द कूट उत्तर-दक्षिण-श्रेणियों में अवस्थित हैं अर्थात् पाँचवाँ कूट चौथे कूट के उत्तर :ॐ में छठे कूट के दक्षिण में, छठा कूट पाँचवें कूट के उत्तर में सातवें कूट के दक्षिण में तथा सातवाँ कूट 卐 छठे कूट के उत्तर में है, स्वयं दक्षिण में है। स्फटिक कूट तथा लोहिताक्ष कूट पर भोगंकरा एवं भोगवती :
नामक दो दिक्कुमारिकाएँ निवास करती हैं। बाकी के कूटों पर कूटों के अनुरूप नाम वाले देव निवास * करते हैं। उन कूटों पर उनके अधिष्ठायक देवों के उत्तम प्रासाद हैं, विदिशाओं में राजधानियाँ हैं।
[प्र. ] भगवन् ! गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत का यह नाम किस प्रकार पड़ा?
[उ. ] गौतम ! पीसे हुए, कूटे हुए, बिखेरे हुए, कोष्ठ (एवं तगर) से निकलने वाली सुगन्ध के सदृश उत्तम, मनोज्ञ, सुगन्ध गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत से निकलती रहती है।
[प्र. ] भगवन् ! क्या वह सुगन्ध ठीक वैसी है?
[उ. ] गौतम ! तत्वतः वैसी नहीं है। गन्धमादन से जो सुगन्ध निकलती है, वह उससे इष्टतर-अधिक इष्ट यावत् अधिक मनोरम है। वहाँ गन्धमादन नामक परम ऋद्धिशाली देव निवास करता है। इसलिए वह गन्धमादन वक्षस्कार पर्वत कहा जाता है। अथवा उसका यह नाम शाश्वत है।
103. [Q.] Reverend Sir ! Where is Gandh-madan Vakshashkar 卐 mountain located in Mahavideh ? चतुर्थ वक्षस्कार
(301)
Fourth Chapter
954555555555555555555554))))))
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org