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卐 सीओआ णं महाणई पवहे पण्णासं जोअणाई विखंभेणं, जोअणं उव्वेहेणं। तयणंतरं च णं मायाए २
परिवद्धमाणी २ मुहमूले पंच जोअणसयाई विक्खंभेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं। उभओ पासिं दोहिं 5 पउमवरवेइआहिं दोहिं अ वणसंडेहिं संपरिक्खित्ता।
[प्र. ] णिसढे णं भंते ! वासहरपव्वए णं कति कूडा पण्णत्ता ? __ [उ. ] गोयमा ! णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा-१. सिद्धाययणकूड़े, २. णिसढकूडे, ३. हरिवासकूडे, म ४. पुव्वविदेहकूडे, ५. हरिकूडे, ६. धिईकूडे, ७. सीओआकूडे, ८. अवरविदेहकूडे, ९. रुअगकूडे। ___ जो चेव चुल्लहिमवंतकूडाणं उच्चत्त-विक्खंभ-परिक्खेवो पुववण्णिओ रायहाणी अ सा चेव इहं . णि अव्वा।
[प्र. ] से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ णिसहे वासहरपव्वए २ ?
[उ. ] गोयमा ! णिसहे णं वासहरपव्वए बहवे कूडा णिसहसंठाणसंठिआ उसभसंठाणसंठिआ, णिसहे अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्ठिईए परिवसइ, से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ णिसहे वासहरपब्बए २।
१०१. [ २ ] उस शीतोदाप्रपातकुण्ड के उत्तरी तोरण से शीतोदा महानदी आगे निकलती है। देवकुरु क्षेत्र में आगे बढ़ती है। विविध प्रकार के कूटों, पर्वतों, निषध, देवकुरु, सूर, सुलस एवं
विद्युत्प्रभ नामक द्रहों को विभक्त करती हुई जाती है। उस बीच उसमें चौरासी हजार (८४,०००) नदियाँ 卐 आ मिलती हैं। वह भद्रशाल वन की ओर आगे जाती है। जब मन्दर पर्वत दो योजन दूर रह जाता है,
तब वह पश्चिम की ओर मुड़ती है। नीचे विद्युत्प्रभ नामक वक्षस्कार पर्वत को भेदकर मन्दर पर्वत के पश्चिम में पश्चिम विदेह क्षेत्र को दो भागों में विभक्त करती हुई बहती है। उस बीच उसमें १६ चक्रवर्ती विजयों में से एक-एक से अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार नदियाँ आ मिलती हैं। इस प्रकार चार लाख अड़तालीस हजार (४,४८,०००) ये तथा चौरासी हजार (८४,०००) पहले की कुल पाँच लाख बत्तीस हजार (५,३२,०००) नदियों के साथ वह शीतोदा महानदी नीचे जम्बूद्वीप के पश्चिम दिशावर्ती जयन्त द्वार की जगती को भेदकर पश्चिमी लवणसमुद्र में मिल जाती है।
शीतोदा महानदी अपने उद्गम-स्थान में पचास योजन चौड़ी है। वहाँ वह एक योजन गहरी है। तत्पश्चात् वह प्रमाण में क्रमशः बढ़ती-बढ़ती जब समुद्र में मिलती है, तब वह ५०० योजन चौड़ी, दस योजन गहरी हो जाती है। वह अपने दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों द्वारा परिवृत है। ___[प्र. ] भगवन् ! निषध वर्षधर पर्वत के कितने कूट हैं ? __[उ. ] गौतम ! उसके नौ कूट हैं-(१) सिद्धायतनकूट, (२) निषधकूट, (३) हरिवर्षकूट,
(४) पूर्वविदेहकूट, (५) हरिकूट, (६) धृतिकूट, (७) शीतोदाकूट, (८) अपरविदेहकूट, तथा 9 (९) रुचककूट।
चुल्लहिमवान् पर्वत के कूटों की ऊँचाई, चौड़ाई, परिधि, राजधानी आदि का जो वर्णन पहले आया 卐 है, वैसा ही इनका है।
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| चतुर्थ वक्षस्कार
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Fourth Chapter
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