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________________ नागागागागागागामा11111111 4555555555555555555555555555555555555 तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं वीसं जोअणसहस्साई एगं च पण्णटुं जोअणसयं दुण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागं च आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं चउणवइ जोअणसहस्साई एगं च ॥ # छप्पण्णं जोअणसयं दुण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स आयामेणंति। तस्स धणुं दाहिणेणं एगं जोअणसयसहस्सं चउवीसं च जोअणसहस्साई तिण्णि अ छायाले जोअणसए णव य एगूणवीसइभाए A जोअणस्स परिक्खेवणंति। रुअगसंठाणसंठिए, सब्बतवणिज्जमए, अच्छे। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अ वणसंडेहिं संपरिक्खित्ते। # णिसहस्स णं वासहरपव्ययस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते जाव आसयंति, सयंति। तस्स मणं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे तिगिंछिद्दहे णामं दहे पण्णत्ते। # पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे, चत्तारि जोअणसहस्साई आयामेणं, दो जोअणसहस्साई । विक्खंभेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले। - तस्स णं तिगिंच्छिद्दहस्स चउदिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। एवं जाव आयामविक्खंभविहूणा जा चेव महापउमद्दहस्स वत्तव्वया सा चेव तिगिंछिद्दहस्सवि वत्तव्वया, तं चेव के पउमद्दहप्पमाणं जाव तिगिंछिवण्णाई, धिई अ इत्थ देवी पलिओवमट्ठिईआ परिवसइ से तेणटेणं गोयमा ! । एवं बुच्चइ तिगिंछिद्दहे तिगिंछिद्दहे। १००. [प्र. ] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत निषध नामक वर्षधर पर्वत कहाँ पर स्थित है ? [उ. ] गौतम ! महाविदेह क्षेत्र के दक्षिण में, हरिवर्ष क्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत निषध नामक वर्षधर पर्वत है। वह । पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है। वह पूर्व और पश्चिम दोनों किनारों से लवणसमुद्र - का स्पर्श करता है। वह ४०० योजन ऊँचा है, ४०० कोस जमीन में गहरा है। वह १६,८४२२३ योजन चौड़ा है। - उसकी बाहा-पार्श्व-भुजा पूर्व-पश्चिम में २०,१६५३५ योजन लम्बी है। उत्तर में उसकी जीवा । (पूर्व-पश्चिम लम्बी) है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। ९४,१५६२ योजन लम्बाई लिए है। दक्षिण की ओर स्थित उसके धनुपृष्ठ की परिधि १,२४,३४६, योजन है। उसका रुचक-गले के आभूषण के आकार जैसा आकार है। वह सम्पूर्णतः स्वर्णमय है, स्वच्छ है। वह दो पद्मवरवेदिकाओं तथा दो वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा है। निषध वर्षधर पर्वत के ऊपर एक बहुत समतल तथा सुन्दर भूमिभाग है, जहाँ देव-देवियाँ निवास | करते हैं। उस बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग के ठीक बीच में एक तिगिंछद्रह नामक द्रह है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा है, उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। वह ४,००० योजन लम्बा, २,००० योजन चौड़ा तथा १० योजन जमीन में गहरा है। वह स्वच्छ, स्निग्ध-चिकना तथा रजतमय तटयुक्त है। ___ उस तिगिछद्रह के चारों ओर तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हैं। लम्बाई, चौड़ाई के अतिरिक्त उस (तिगिंछद्रह) का सारा वर्णन पद्मद्रह के समान है। परम ऋद्धिशालिनी, एक पल्योपम के आयुष्य वाली है a555 F听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 चतुर्थ वक्षस्कार (291) Fourth Chapter 15555555555555555步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙乐园 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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