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________________ LLELLE LE LE 5555555फ्र त 卐 F [उ. ] गोयमा ! हरिवासे णं वासे मणुआ अरुणा, अरुणाभासा, सेआ णं संखदलसण्णिकासा। 5 हरिवासे अ इत्थ देवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिईए परिवसइ, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ | ९९. [.] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष नामक क्षेत्र कहाँ पर है ? 卐 [उ. ] गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र 15 के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत हरिवर्ष नामक क्षेत्र है। वह अपने पूर्वी तथा पश्चिमी दोनों किनारों से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। उसका विस्तार ८, ४२११९ योजन है । उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम १३,३६११ योजन लम्बी है। उत्तर में उसकी जीवा है, जो पूर्व-पश्चिम है। वह पूर्व तथा पश्चिम दोनों ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। वह ७३,९०११७५ योजन । उसकी धनुः पीठिका दक्षिण में ८४,०१६ योजन परिधि की है। 5 लम्बी [प्र.] भगवन् ! हरिवर्षक्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार कैसा है ? [ उ. ] गौतम ! उसमें अत्यन्त समतल तथा रमणीय भूमिभाग है। वह मणियों तथा तृणों से सुशोभित है। मणियों एवं तृणों के वर्ण, गन्ध, स्पर्श और शब्द पूर्व वर्णित के अनुरूप हैं। हरिवर्ष क्षेत्र में जहाँ-तहाँ छोटी-छोटी वापिकाएँ, पुष्करिणियाँ आदि हैं। वहाँ अवसर्पिणी काल के सुषमा नामक द्वितीय 5 Б F F आरक के समान सुखमय स्थिति है। अवशेष वक्तव्यता पूर्ववत् है । F 5 [प्र. ] भगवन् ! हरिवर्ष क्षेत्र में विकटापाती नामक वृत्त वैताढ्यपर्वत कहाँ बतलाया गया है ? F [उ. ] गौतम ! हरि या हरिसलिला नामक महानदी के पश्चिम में, हरिकान्ता महानदी के पूर्व में, 5 हरिवर्ष क्षेत्र के बीचोंबीच विकटापाती नामक वृत्तवैताढ्य पर्वत बतलाया गया है। विकटापाती 5 वृत्तवैताढ्य की चौड़ाई, ऊँचाई, गहराई, परिधि, आकार वैसा ही है, जैसा शब्दापाती का है। इतना अन्तर है - वहाँ अरुण नामक क्षेत्र है। वहाँ विद्यमान कमल आदि के वर्ण, आभा, आकार आदि विकटापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत के समान हैं । वहाँ परम ऋद्धिशाली अरुण नामक देव निवास करता है। दक्षिण में उसकी राजधानी है। [प्र. ] भगवन् ! हरिवर्ष क्षेत्र नाम किस कारण पड़ा ? [उ. ] गौतम ! हरिवर्ष क्षेत्र में मनुष्य ( युगलिया ) उदय होते रक्तवर्णयुक्त सूर्य की किरणों के समान रक्तप्रभायुक्त हैं कतिपय चन्द्र के समान उज्ज्वल शंख- खण्ड के सदृश श्वेत आभा वाले हैं। श्वेतप्रभायुक्त हैं। वहाँ परम ऋद्धिशाली, पल्योपभ स्थिति वाला हरिवर्ष नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण वह क्षेत्र हरिवर्ष कहलाता है। 99. [Q.] Reverend Sir ! Where is Harivarsh area in Jambu continent ? 卐 [Ans.] In the south of Nishadh Varshadhar mountain, in the north of Maha Himavan Varshadhar mountain, in the west of eastern salty ocean and in the east of western salty ocean in Jambu continent Harivarsh area is located. It touches Lavan Samudra from its eastern and western ends. It is spread in 8,421 and one-nineteenth yojans. चतुर्थ वक्षस्कार (289) फ्र Jain Education International फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ For Private & Personal Use Only Fourth Chapter 4 生 www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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