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4 hundreds of pillars. There is a bench studded with jewels in the middle 41 of it. On that bench (mani pithika), there is a bed. That island is called
Ganga island because it is the residence of very prosperous Ganga Devi. Further, that name is ever lasting.
९१. [३] तस्स णं गंगप्पवायकुंडस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं गंगामहाणई पवूढा समाणी उत्तरद्धभरहवासं एज्जमाणी २ सत्तहिं सलिलासहस्सेहिं आउरेमाणी २ अहे खण्डप्पवायगुहाए वेअद्धपव्वयं ॐ दालइत्ता दाहिणद्धभरहवासं एज्जमाणी २ दाहिणद्धभरहवासस्स बहुमज्झदेसभागं गंता पुरत्थाभिमुही
आवत्ता समाणी चोद्दसहिं सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पुरथिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ। । म गंगा णं महाणई पवहे छ सकोसाई जोअणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं उव्वेहेणं। तयणंतरं च णं मायाए 5
२ परिवद्धमाणी २ मुहे बासढि जोअणाई अद्धजोअणं च विक्खंभेणं, सकोसं जोअणं उब्वेहेणं। उभओ के पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं, दोहिं वणसडेहिं संपरिक्खित्ता। वेइआ-वणसंडवण्णओ भाणिअव्यो। है एवं सिंधूए वि णेअव्वं जाव तस्स णं पउमद्दहस्स पच्चथिमिल्लेणं तोरणेणं सिंधुआवत्तणकूडे 5 दाहिणाभिमुही सिंधुप्पवायकुंडं, सिंधुद्दीवो अट्ठो सो चेव जाव अहे तिमिसगुहाए वेअद्धपव्वयं दालइत्ता
पच्चत्थिमाभिमुही आवत्ता समाणा चोहससलिला अहे जगई पच्चत्थिमेणं लवणसमुदं जाव समप्पेइ, सेसं मतं चेवत्ति। ॐ ९१. [३] उस गंगाप्रपातकुण्ड के दक्षिणी तोरण से गंगा महानदी आगे निकलती है। वह उत्तरार्द्ध 9 भरत क्षेत्र की ओर आगे बढ़ती है तब सात हजार नदियाँ उसमें आ मिलती हैं। वह उनके साथ मिलकर
खण्डप्रपात गुफा होती हुई, वैताढ्य पर्वत को पार करती हुई दक्षिणार्ध भरत क्षेत्र की ओर जाती है। वह फ़ दक्षिणार्ध भरत के ठीक बीच से बहती हुई पूर्व की ओर मुड़ती है। फिर चौदह हजार नदियों के परिवार म से युक्त होकर वह (गंगा महानदी) जम्बूद्वीप की जगती को चीरकर पूर्वी-पूर्वदिशावर्ती लवणसमुद्र में
मिल जाती है। 卐 गंगा महानदी का प्रवह-उद्गम स्रोत-जिस स्थान से वह निकलती है, वहाँ उसका प्रवाह एक कोस से अधिक छह योजन की चौड़ाई लिए हुए है। वह आधा कोस गहरा है। तत्पश्चात् वह महानदी क्रमशः के प्रमाण में विस्तार में बढ़ती जाती है। जब समुद्र में मिलती है, उस समय उसकी चौड़ाई साढ़े बासठ +योजन होती है, गहराई एक योजन एक कोस-(सवा योजन) होती है। वह दोनों ओर दो
पद्मवरवेदिकाओं तथा वनखण्डों द्वारा संपरिवृत है। वेदिकाओं एवं वनखण्डों का वर्णन पूर्ववत् है। ___गंगा महानदी के अनुरूप ही सिन्धु महानदी का आयाम-विस्तार है। इतना अन्तर है-सिन्धु महानदी
उस पद्मद्रह के पश्चिम दिशावर्ती तोरण से निकलती है, पश्चिम दिशा की ओर बहती है, सिन्धुआवर्त ॐ कूट से मुड़कर दक्षिण दिशा की ओर बहती है। आगे सिन्धुप्रपातकुण्ड, सिन्धुद्वीप आदि का वर्णन
गंगाप्रपातकुण्ड, गंगाद्वीप आदि के समान है। फिर नीचे तिमिस्र गुफा से होती हुई वह वैताढ्य पर्वत को ॐ चीरकर पश्चिम की ओर मुड़ती है। उसमें वहाँ चौदह हजार नदियाँ मिलती हैं। फिर वह जगती को + चीरकर पश्चिमी लवणसमुद्र में जाकर मिलती है। बाकी सारा वर्णन गंगा महानदी के अनुरूप है। | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
Jambudveep Prajnapti Sutra
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