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९१. [ २ ] उस गंगाप्रपातकुण्ड की तीन दिशाओं में- पूर्व, दक्षिण तथा पश्चिम में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। उन सीढ़ियों का वर्णन इस प्रकार है । उनके नेम-भूभाग से ऊपर निकले हुए प्रदेश हीरकमय हैं। उनके सीढ़ियों के मूल प्रदेश रिष्टरत्नमय हैं। उनके खंभे वैडूर्यरत्नमय हैं। उनके फलक-पट्ट-पाट 5 सोने-चाँदी से बने हैं। उनकी सूचियाँ - दो-दो पाटों को जोड़ने के कीलें लोहिताक्ष-रत्न से निर्मित हैं। उनकी सन्धियाँ - दो-दो पाटों के बीच के भाग वज्ररत्नमय हैं। उनके आलम्बन - चढ़ते-उतरते समय सहारे लिए निर्मित आश्रयभूत स्थान, आलम्बनवाह - भित्ति- प्रदेश विविध प्रकार की मणियों से बने हैं।
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5 वज्ररत्न - निर्मित हैं । कमल की-सी उत्तम सुगन्ध उनसे फूटती है। वे सुरम्य हैं, चित्त को प्रसन्न करने 5
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फ पताकाएँ, दो-दो घंटाओं की जोड़ियाँ, दो-दो चँवरों की जोड़ियाँ लगी हैं। उन पर उत्पलों, पद्मों यावत्
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5 शतसहस्रपत्रों कमलों के ढेर के ढेर लगे हैं, जो सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ एवं सुन्दर हैं।
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तीनों दिशाओं में विद्यमान उन तीन-तीन सीढ़ियों के आगे तोरण-द्वार बने हैं। वे अनेकविध रत्नों से सज्जित हैं, मणिमय खंभों पर टिके हैं, सीढ़ियों के सन्निकटवर्ती हैं। उनमें बीच-बीच में विविध तारों के आकार में बहुत प्रकार के मोती जड़े हैं। वे वृक, वृषभ, अश्व, मनुष्य, मकर, खग, सर्प, किन्नर, रुरुसंज्ञक 5 मृग, शरभ-अष्टापद, चमर-चँवरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्रांकनों से सुशोभित हैं । उनके खंभों पर बनी वज्ररत्नमयी वेदिकाएँ बड़ी सुहावनी लगती हैं। उन पर चित्रित विद्याधर - युगल- 5 सहजात-युगल-एक समान, एक आकारयुक्त कठपुतलियों की ज्यों चलते हुए से प्रतीत होते हैं। अपने पर 5 जड़े हजारों रत्नों की प्रभा से वे सुशोभित हैं । सहस्रों चित्रों से वे बड़े सुहावने एवं अत्यन्त देदीप्यमान हैं, देखने मात्र से नेत्रों में समा जाते हैं। वे सुखमय स्पर्शयुक्त एवं शोभामय रूपयुक्त हैं। उन पर जो घंटियाँ लगी फ हैं, वे पवन से आन्दोलित होने पर बड़ा मधुर शब्द करती हैं, मनोरम प्रतीत होती हैं।
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उन तोरणद्वारों पर स्वस्तिक, श्रीवत्स आदि आठ-आठ मंगल चिह्न अंकित हैं। काले चँवरों की फ ध्वजाएँ (नीले चँवरों की ध्वजाएँ) हरे चँवरों की यावत् सफेद चँवरों की ध्वजाएँ, जो उज्ज्वल एवं
सुकोमल हैं, उन पर फहराती हैं। उनमें रुपहले वस्त्र लगे हैं। उनके दण्ड, जिनमें वे लगी हैं,
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उन गंगाप्रपातकुण्ड के ठीक बीच में गंगाद्वीप नामक एक विशाल द्वीप है। वह आठ योजन
5 लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ अधिक पच्चीस योजन है । वह जल से ऊपर दो कोस ऊँचा उठा 5
5 वनखण्ड है। उनका वर्णन पूर्ववत् है।
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वाली हैं। उन तोरण-द्वारों पर बहुत से छत्र, अतिछत्र- छत्रों पर लगे छत्र, पताकाएँ, पताकाओं पर लगी 5
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हुआ है । वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ एवं सुकोमल है। उसके चारों ओर एक पद्मवरवेदिका तथा एक
गंगाद्वीप पर बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग है। उसके ठीक बीच में गंगा देवी का विशाल भवन है।
फ वह एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा तथा कुछ कम एक कोस ऊँचा है। वह सैकड़ों खंभों पर टिका
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5 है। उसके ठीक बीच में एक मणिपीठिका है। उस पर शय्या है। यह परम ऋद्धिशालिनी गंगा देवी का 5 आवास-स्थान होने से वह द्वीप गंगाद्वीप कहा जाता है, अथवा यह उसका शाश्वत नाम है।
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91. [2] There are stairs of three steps each in three sides namely
eastern, southern and western side of Ganga waterfall pond. The
description of those steps is as under. The area jutting out from the earth
Jambudveep Prajnapti Sutra
फ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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