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________________ 85555)))))))))))))))))))))) 855555555555555555555555555555555555555555555555 45 [Ans.] Gautam ! There are lotuses of many types at various places 41 which contain many leaves up to some are having a thousand leaves and some have hundred thousand leaves. Those lotuses have the shape, colour and aura similar to that of padma drah. So it is called padma drah. Shri Devi who is very prosperous and has the life-span of one palyopam resides there. Further, Gautam ! The name Padma Drah is permanent. It is never eliminated. ॐ गंगा, सिन्धु तथा रोहितांशा नदियाँ GANGA, SINDHU AND ROHITANSHA RIVERS ९१. [१] तस्स णं पउमद्दहस्स पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं गंगा महाणई पवूढा समाणी पुरत्थाभिमुही ॐ पञ्च जोअणसयाई पव्वएणं गंता गंगावत्तकूडे आवत्ता समाणी पञ्च तेवीसे जोअणसए तिण्णि अ एगूणवीसइभाए जोअणस्स दाहिणाभिमुही पव्वएणं गंता महया घडमुहपवत्तएणं मुत्तावलीहारसंठिएणं साइरेगजोअणसइएणं पवाएणं पवडइ। है गंगा महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिया पण्णत्ता। सा णं जिभिआ अद्धजोअणं F आयामेणं, छ सकोसाइं जोअणाई विक्खंभेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, मगरमुह-विउट्ठ-संठाणसंठिआ, म सबवइरामई, अच्छा, सहा। गंगा महाणई जत्थ पवडइ, एत्थ णं महं एगे गंगप्पवाए कुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते, सहि जोअणाई के आयामविक्खंभेणं, णउअं जोअणसयं किंचिविसेसाहि परिक्खेवेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं, अच्छे, सण्हे, * रययामयकूले, समतीरे, वइरामयपासाणे, वइरतले, सुवण्ण-सुब्भरययामय-वालुआए, वेरुलिअमणि卐 फालिअपडलपच्चोअडे, सुहोआरे, सुहोत्तारे, णाणामणितित्थसुबद्धे, बट्टे, अणुपुब्बसुजायकेवप्पगंभीरसीअलजले, संछण्णपत्तभिसमुणाले, बहुउप्पल-कुमुअ-णलिण-सुभग-सोगंधिअॐ पोंडरीअ-महापोंडरीअ-सयपत्त-सहस्सपत्त-सयसहस्सपत्त-पप्फुल्लकेसरोवचिए, छप्पय-महुयरम परिभुज्जमाणकमले, अच्छ-विमल-पत्थसलिले, पुण्णे, पडिहत्थभवन-मच्छ-कच्छभ अणेगसउणगण-मिहुणपविअरियसन्नइअ-महुरसरणाइए पासाईए। से णं एगाए पउमवरवेइयाए एगेणं + वणसण्डेणं सब्बओ समंता संपरिक्खित्ते। वेइआवणसंडगाणं पउमाणं वण्णओ भाणिअव्वो। ९१. [१] उस पद्मद्रह के पूर्वी तोरण-द्वार से गंगा महानदी निकलती है। वह पर्वत पर पाँच सौ ॐ योजन बहती है। गंगावर्तकूट के पास से वापस मुड़ती है, ५२३,३ योजन दक्षिण की ओर बहती है। घड़े के मुँह से निकलते हुए पानी की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक, मोतियों के बने हार के सदृश आकार में वह प्रपात-कुण्ड में गिरती है। प्रपात-कुण्ड में गिरते समय उसका प्रवाह चुल्ल हिमवान् ॐ पर्वत के शिखर से प्रपात-कुण्ड तक कुछ अधिक सौ योजन होता है। जहाँ गंगा महनदी गिरती है, वहाँ एक जिह्निका-जिह्वा की-सी आकृतियुक्त प्रणालिका (नाली) है। ॐ वह प्रणालिका आधा योजन लम्बी तथा छह योजन एवं एक कोस चौड़ी है। वह आधा कोस मोटी है। ॐ उसका आकार मगरमच्छ के खुले मुँह जैसा है। वह सम्पूर्णतः हीरकमय है, स्वच्छ एवं सुकोमल है। चतुर्थ वक्षस्कार (263) Fourth Chapter ))))))99555555555555555 )))))) ) )) 995 355 ))))) )))))))) )) )))))) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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