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________________ 85555555555555555555555555555555555558 ॐ आयामविक्खंभेणं, अड्डाइज्जाई धणुसयाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमई अच्छा। तीसे णं मणिपेढिआए उप्पिं । एत्थ णं महं एगे सयणिज्जे पण्णत्ते, सयणिज्जवण्णओ भाणिअब्बो। से णं पउमे अण्णेणं अट्ठसएणं परमाणं तदद्भुच्चत्तप्पमाणमित्ताणं सवओ समंता संपरिक्खित्ते। ते णं पउमा अद्धजोअणं आयाम-विक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, दसजोअणाई उबेहेणं, कोसं ऊसिया जलंताओ, साइरेगाइं दसजोअणाई उच्चत्तेणं। तेसि णं पउमाणं अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा-वइरामया मूला, जाव (पूर्ववत्) कणगामई म कण्णिआ। सा णं कण्णिआ कोसं आयामेणं, अद्धकोसं बाहल्लेणं, सव्वकणगामई, अच्छा इति। तीसे णं कण्णिआए उप्पिं बहुसमरमणिज्जे जाव मणीहि उवसोभिए। ९०. [ २ ] उस कर्णिका के ऊपर अत्यन्त समतल एवं सुन्दर भूमिभाग है। वह ढोलक पर मढ़े हुए , चर्मपुट की ज्यों समतल है। उस समतल तथा रमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन है। वह एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा तथा कुछ कम एक कोस ऊँचा है। उसमें सुन्दर एवं दर्शनीय सैकड़ों खंभे हैं। उस भवन के तीन दिशाओं में तीन द्वार हैं। वे द्वार पाँच सौ धनुष ऊँचे हैं, अढ़ाई सौ धनुष चौड़े हैं तथा उनके प्रवेशमार्ग भी उतने ही चौड़े हैं। उन पर उत्तम स्वर्णमय छोटे-छोटे शिखरकंगूरे बने हैं। वे पुष्पमालाओं से सजे हैं, जो पूर्व वर्णनानुसार जानें। उस भवन का भीतरी भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय है। वह ढोलक पर मढ़े चमड़े की ज्यों समतल है। उसके ठीक बीच में एक विशाल मणिपीठिका है। वह मणिपीठिका पाँच सौ धनुष लम्बी-चौड़ी तथा अढ़ाई सौ धनुष मोटी सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है। उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल शय्या है। उसका वर्णन पूर्ववत् है। वह पद्म दूसरे एक सौ आठ पद्मों से, जो ऊँचाई में, विस्तार में उससे आधे हैं, सब ओर से घिरा हुआ है। वे पद्म आधा योजन लम्बे-चौड़े, एक कोस मोटे, दस योजन पानी में गहरे तथा एक कोस जल से ऊपर ऊँचे उठे हुए हैं। यों जल के भीतर से लेकर ऊँचाई तक वे दस योजन से कुछ अधिक हैं। उन पद्मों का विशेष वर्णन इस प्रकार है-उनके मूल वज्ररत्नमय, यावत् नाना मणिमय हैं। उनकी कर्णिका कनकमय है। वह कर्णिका एक कोश लम्बी, आधा कोश मोटी, सर्वथा स्वर्णमय तथा स्वच्छ है। उस कर्णिका के ऊपर एक बहुत समतल, रमणीय भूमिभाग है, जो नाना प्रकार की मणियों से सुशोभित है। 90. [2] On that Karnika, there is extremely levelled and beautiful portion-as levelled as the leather skin on a drum. At the centre of that 4 attractive area there is a huge mansion one kos long, half a kos wide and less than a kos high. There are hundreds of beautiful worth seeing pillars in it. There are three gates on the three sides of that mansion. Those gates are 500 dhanush high and 250 dhanush wide and the passage of entrance is also that much wide. There are small gold spires on these gates. They are decorated with garlands of flowers and their description may be understood similar to as mentioned earlier. 955555555555555555555555555555555555555555558 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (260) Jambudveep Prajnapti Sutra 855555555555555555555555555555558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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