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पद्मद्रह वर्णन DESCRIPTION OF PADMA LAKE (DRAH)
९०. [१] तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए इत्थ णं इक्के महं पउमद्दहे
तस्स णं पउमद्दहस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थं महं एगे पउमे पण्णत्ते, जोअणं आयाम - विक्खंभेणं, अद्धजोअणं वाहल्लेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ। साइरेगाई दसजोअणाई सव्वग्गेणं पण्णत्ता । से णं एगाए जगईए सव्वओ समंता सपरिक्खित्तो जम्बुद्दीव - जगइप्पमाणा, 5 गवक्खकडएवि तह चेव पमाणेणंति ।
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5 णामं दहे पण्णत्ते । पाईण-पडीणायए, उदीण - दाहिण - वित्थिण्णे, इक्कं जोअण- सहस्सं आयामेणं, पंच फ्र
जो अणसयाई विक्खंभेणं, दस जोअणाई उब्वेहेणं, अच्छे, सण्हे, रययामयकूले जाव पासाईए जाव पडिरूपवेत्ति । से णं गाए पउमवरवेइयाए एगेण य वणसडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । वेइआ - वणसंडवण्णओ भाणि अव्वोत्ति । तस्स णं पउमद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता । वण्णावासो भाणिअव्वोत्ति । सिणं तिसोवाणपडिरूवगाणं पुरओ पत्तेअं पत्तेअं तोरणा पण्णत्ता । ते णं तोरणा णाणामणिमया ।
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फ्र तस्स णं पउमस्स अयमेवारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा - वइरामया मूला, रिट्ठामए कंदे, 5
वेरुलिआमए णाले, वेरुलिआमया बाहिरपत्ता, जम्बूणयामया अब्भिंतरपत्ता, तवणिज्जमया केसरा, णाणामणिमया पोक्खरत्थिभाया, कणगामई कण्णिगा । सा णं अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं, कोसं बाहल्लेणं, सव्व कणगामई, अच्छा।
उस ग्रह के चारों ओर एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड है। वेदिका एवं वनखण्ड का वर्णन 5 पूर्व वर्णित के अनुसार है। उस पद्मद्रह की चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। वे पूर्व वर्णनानुसार हैं। उन तीन-तीन सीढ़ियों में से प्रत्येक के आगे नाना प्रकार की मणियों से सुसज्जित 5 तोरणद्वार बने हैं।
उस पद्मद्रह के बीचोंबीच एक विशाल पद्म (कमल) है। वह एक योजन लम्बा, एक योजन चौड़ा
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फ तथा आधा योजन मोटा है। दस योजन जल के भीतर गहरा है। दो कोश जल से ऊँचा उठा हुआ है। इस
९०. [ १ ] उस अत्यन्त समतल तथा रमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में पद्मद्रह नामक एक विशाल ग्रह है । वह पूर्व-पश्चिम में एक हजार योजन लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में पाँच सौ योजन चौड़ा 5 है। उसकी गहराई दस योजन है। वह स्वच्छ, सुकोमल, रजतमय, तटयुक्त यावत् शोभायुक्त सुन्दर - मन में बस जाने वाला है।
5 प्रकार उसका कुल विस्तार दस योजन से कुछ अधिक है। वह एक जगती- प्राकार द्वारा सब ओर से
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घिरा है। उस प्राकार का प्रमाण जम्बूद्वीप के प्राकार के तुल्य है। उसका गवाक्ष-समूह झरोखे भी प्रमाण फ में जम्बूद्वीप के गवाक्षों के सदृश हैं।
5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
उस पद्म का वर्णन इस प्रकार है-उसके मूल वज्ररत्नमय हीरकमय हैं। उसका कन्द-मूल-नाल फ की मध्यवर्ती ग्रन्थि रिष्टरत्नमय है। उसका नाल वैडूर्यरत्नमय है। उसके बाहरी पत्ते वैडूर्यरत्न घटित हैं। उसके भीतरी पत्ते कुछ-कुछ लालिमान्वित रंगयुक्त या पीतवर्णयुक्त स्वर्णमय हैं। उसके केसर- 5
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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