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________________ ahhhhh hhhh hhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh 55555555 555555555555)))) ) )) # अभिसेअपेढाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति, तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सेणावइरयणे जाव सत्यवाहप्पभिईओ अभिसेअपेढाओ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति, तए णं तस्स # भरहस्स रण्णो आभिसेक्कं हत्थिरयणं दुरूढस्स समाणस्स इमे अटुटुमंगलगा पुरओ जाव संपत्थिा , जोऽवि अ अइगच्छमाणस्स गमो पढमो कुबेरावसाणो सो चेव इहंपि कमो सक्कारजढो णेअब्बो जाव कुबेरोव्व देवराया केलासं सिहरिसिंगभूअंति।। तए णं से भरहे राया मज्जणघरं अणुपविसइ २ त्ता जाव भोअणमंडवंसि सुहासणवरगए अट्ठमभत्तं पारेइ २ ता भोअणमंडवाओ पडिणिक्खमइ २ ता उप्पिं पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं भुंजमाणे विहरइ। # तए णं से भरहे राया दुवालससंवच्छरिअंसि पमोअंसि णिवत्तंसि समाणंसि जेणेव मज्जणघरे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला सीहासणवरगए # पुरत्थाभिमुहे णिसीणइ २ त्ता सोलस देवसहस्से सक्कारेइ सम्माणेइ २ ता पडिविसज्जेइ २ ता बत्तीसं रायवरसहस्सा सक्कारेइ सम्माणेइ २ ता सेणावइरयणं सक्कारेइ सम्माणेइ २ ता जाव पुरोहियरयणं सक्कारेड सम्माणेड २त्ता एवं तिणि सद्रं सवआरसए अद्वारस सेणिप्पसेणीओ सक्कारेड सम्माणेड २त्ता अण्णे बहवे राईसरतलवर जाव सत्थवाहप्पभिइओ सक्कारेइ सम्माणेइ २ ता पडिविसज्जेति २ ता उप्पिं # पासायवरगए जाव विहरइ। ८४. [५] इस प्रकार विशाल राज्याभिषेक में अभिषिक्त होकर राजा भरत ने अपने कौटुम्बिक # पुरुषों को बुलाया। बुलाकर कहा-देवानुप्रियो ! हाथी पर सवार होकर तुम लोग विनीता राजधानी के के तिकोने स्थानों, तिराहों, चौराहों तथा विशाल राजमार्गों पर जोर-जोर से यह घोषणा करो कि इस # उपलक्ष्य में मेरे राज्य के निवासी बारह वर्ष पर्यन्त प्रमादोत्सव मनाएँ। इस बीच राज्य में कोई भी क्रय-विक्रय आदि सम्बन्धी शुल्क, सम्पत्ति आदि पर प्रति वर्ष लिया जाने वाला राज्य-कर नहीं लिया जायेगा। किसी से यदि कुछ लेना है, पाना है, उसमें खिंचाव न किया जाए, जोर न दिया जाए, # आदान-प्रदान का, नाप-जोख का क्रम बन्द रहे, राज्य के कर्मचारी, अधिकारी किसी के घर में प्रवेश न करें, दण्ड-जुर्माना, कुदण्ड-बड़े अपराध के लिए दण्डरूप में लिया जाने वाला अल्पद्रव्य-थोड़ा * जुर्माना ये दोनों ही न लिये जाएँ। यावत् पुर, जनपद सहित यह बारह वर्षीय प्रमोद उत्सव मनाया जाये। यह घोषणा कर मुझे अवगत कराओ। राजा भरत की यह बात सुनकर वे कौटुम्बिक पुरुष बहुत हर्षित तथा आनन्दित हुए। उनके मन में बड़ी प्रसन्नता हुई। हर्ष से उनका हृदय खिल उठा। उन्होंने विनयपर्वक राजा का आदेश स्वीकार किया। स्वीकार कर वे शीघ्र ही हाथी पर सवार हए। यावत विनीता राजधानी में उन्होंने राजा के आदेशानुरूप घोषणा की। घोषणा कर राजा को अवगत कराया। । विराट् राज्याभिषेक-समारोह सम्पन्न होने पर राजा भरत सिंहासन से उठा। उठकर स्त्रीरत्न सुभद्रा के साथ बत्तीस हजार नाटक-मंडलियों से संपरिवृत वह राजा अभिषेक-पीठ से उसके पूर्वी त्रिसोपानोपगत मार्ग से नीचे उतरा। नीचे उतरकर अभिषेक-मण्डप से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ आभिषेक्य हस्तिरत्न था, यहाँ आकर अंजनगिरि के शिखर के समान उन्नत गजराज पर आरूढ़ हुआ। राजा भरत के तृतीय बक्षस्कार 55555555;)))))))))))))55555555555555555555553 ת ת נ ת נ ת נ ת ת נ ת ת (245) Third Chapter फ़ फ़ फ़फ़))) ) ))) )) ))) ) )) ) ) )) ))) For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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