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________________ )) ))) )) ) ) ) )) ) ) 85 5 555555555555555555 पासायवरगए फुट्टमाणेहिं मुइंगमत्थएहिं बत्तीसइबद्धेहिं णाडएहिं उवलालिजमाणे २ उवणच्चिज्जमाणे २ ॥ उवगिज्जमाणे २ महया जाव भुंजमाणे विहरइ। ८३. [ ४ ] राजा भरत का सहस्रों नर-नारी अपने नेत्रों से बार-बार दर्शन कर रहे थे। सहस्रों के नर-नारी अपने वचनों द्वारा बार-बार उसका गुण-संकीर्तन कर रहे थे। सहस्रों नर-नारी हृदय से उसका बार-बार अभिनन्दन कर रहे थे। सहस्रों नर-नारी अपने शुभ मनोरथ-उत्सुकतापूर्ण मनःकामनाएँ लिए हए थे। सहस्रों नर-नारी उसकी कान्ति-देहदीप्ति. उत्तम सौभाग्य आदि गणों के कारण-ये स्वामी हमें सदा प्राप्त रहें, बार-बार ऐसी अभिलाषा करते थे। नर-नारियों द्वारा हजारों हाथों से की गई प्रणामांजलियों को अपना दाहिना हाथ ऊँचा उठाकर बार-बार स्वीकार करता हुआ, घरों की हजारों पंक्तियों को लाँघता हुआ, वीणा, ढोल, तुरही आदि वाद्यों की मधुर, मनोहर, सुन्दर ध्वनि में आनन्द लेता हुआ, राजा भरत जहाँ अपना घर था, अपने सर्वोत्तम प्रासाद का द्वार था, वहाँ आया। वहाँ आकर आभिषेक्य हस्तिरत्न को ठहराया, उससे नीचे उतरा। नीचे उतरकर सोलह हजार + देवों का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें सत्कृत-सम्मानित कर बत्तीस हजार राजाओं का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें सत्कृत-सम्मानित कर सेनापतिरत्न, गाथापतिरत्न, वर्धकिरन तथा पुरोहितरल का सत्कार किया, सम्मान किया। उनका सत्कार-सम्मान कर तीन सौ साठ पाचकों का सत्कार-सम्मान किया, अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि-जनों का सत्कार-सम्मान किया। माण्डलिक राजाओं, ऐश्वर्यशाली, पुरुषों तथा सार्थवाहों आदि का सत्कार-सम्मान किया। उन सबको सत्कृत-सम्मानित कर सुभद्रा नामक स्त्रीरत्न, बत्तीस हजार ऋतु कल्याणिकाओं : तथा बत्तीस हजार जनपद-कल्याणिकाओं, बत्तीस-बत्तीस के समूह में बत्तीस हजार नाटक-मण्डलियों 卐 से संपरिवृत राजा भरत कुबेर की ज्यों कैलाश पर्वत के शिखर के तुल्य अपने उत्तम प्रासाद में गया। राजा ने अपने मित्रों-सुहृज्जनों, माता, भाई, बहन आदि स्वजन-पारिवारिक जनों तथा श्वसुर, साले आदि सम्बन्धियों से कुशल समाचार पूछे। फिर जहाँ स्नानघर था, वहाँ गया। स्नान आदि सम्पन्न कर ॐ स्नानघर से बाहर निकला। जहाँ भोजन-मण्डप था, आया। भोजन-मण्डप में आकर सुखासन पर बैठा, तेले की तपस्या का पारणा किया। पारणा कर अपने महल में गया। वहाँ मृदंग बज रहे थे, बत्तीस बत्तीस नाटक चल रहे थे, नृत्य हो रहे थे। यों नाटककार, नृत्यकार, संगीतकार राजा का मनोरंजन कर 卐 रहे थे, गीतों द्वारा राजा का कीर्ति-स्तवन कर रहे थे। राजा उनका आनन्द लेता हुआ सांसारिक सुख का भोग करने लगा। 83. [4] Thousands of men and women were looking at king Bharat again and again. Thousands of people were appreciating him repeatedly. Thousands of people were greeting him. Thousands of people were having meritorious desires in their mind. Thousands of people were desiring again and again that they should always have him as their master as he had a charming body and many good qualities. King Bharat was accepting the good wishes of thousands of men and women again and again by raising his right hand upwards. He was passing through | तृतीय वक्षस्कार Third Chapter 山听听听听听听听听听听听听听听$$ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$5$$$$$$ ))) ) ))) )) )) )) ) 5 • (235) 卐 3555555555)))))))))))) )))))))) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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