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चित्र परिचय १०
ऋषभकूट पर्वत पर नामोल्लेखन
महाराज भरत अपने रथ पर आरूढ़ होकर विशाल सेना के साथ ऋषभकूट पर्वत के पास
आये और रथ के अग्र भाग से तीन बार ऋषभकूट पर्वत को स्पर्श किया फिर रथ खड़ा कर उतरे । काकिणी रत्न मंजूषा में से काकिणी रत्न निकाला और ऋषभकूट पर्वत के पूर्व के विशाल गगनचुम्बी शिला पट्ट पर इस प्रकार नामांकन किया
"इस अवसर्पिणी काल के तीसरे आरक के पश्चिम भाग में-मैं भरत नामक चक्रवर्ती हुआ
हूँ। मैं भरत क्षेत्र का प्रथम - प्रधान राजा हूँ, भरत क्षेत्र का अधिपति हूँ, नरवरेन्द्र हूँ। मेरा कोई प्रतिशत्रु – प्रतिपक्षी नहीं है। मैंने समस्त भारतवर्ष को जीत लिया है। "
इस प्रकार अभिलेख लिखने के पश्चात् भरत वापस अपने शैन्य शिविर में लौट आये ।
WRITING NAME ON RISHABH-KOOT MOUNTAIN
King Bharat approached Rishabh-koot mountain riding his chariot and accompanied by his large army. He touched the mountain three times with the front of his chariot. He then stopped the chariot and god down. He took out the Kakini ratna from its box and with this radiant gem inscribed the following on the eastern face of 5 the lofty rock –
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"In the last part of the third epoch of this regressive half-cycle of time – I,
- वक्षस्कार ३, सूत्र ८१
Bharat, have become the emperor. I am the first and foremost ruler, the sovereign
and the king of kings of Bharat area. I have no enemy, no adversary. I have conफ quered Bharat area. "
After etching the this inscription Bharat returned to his army camp.
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Vakshaskar-3, Sutra-81
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