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________________ नहीं कर सकते थे। उस उत्तम मणि को धारण करने वाले मनुष्य का संग्राम में किसी भी शस्त्र द्वारा वध किया जाना शक्य नहीं था। उसके प्रभाव से यौवन सदा स्थिर रहता था, बाल तथा नाखून नहीं बढ़ते थे। उसे धारण करने से मनुष्य सब प्रकार के भयों से विमुक्त हो जाता था। इन अनुपम विशेषताओं से युक्त मणिरत्न को राजा भरत ने हाथ में लेकर गजराज के मस्तक के दाहिने भाग पर बाँधा। भरत क्षेत्र के अधिपति राजा भरत का वक्षस्थल सुन्दर हारों से सुशोभित एवं प्रीतिकर लग रहा था। यावत् अपनी ऋद्धि से इन्द्र जैसा ऐश्वर्यशाली, यशस्वी लगता था। मणिरत्न प्रकाश फैला रहा था तथा चक्ररत्न द्वारा बताये जाते मार्ग के सहारे आगे बढ़ता जा रहा था। अपने पीछे-पीछे चलते हुए हजारों नरेशों से युक्त राजा भरत उच्च स्वर से समुद्र के गर्जन की ज्यों सिंहनाद करता हुआ, जहाँ तमिस्रा गुफा का दक्षिणी द्वार था, वहाँ आया। चन्द्रमा जिस प्रकार बादलों के सघन अन्धकार में प्रविष्ट होता है, वैसे ही वह दक्षिणी द्वार से तमिस्रा गुफा में प्रविष्ट हुआ। फिर राजा भरत ने काकणीरत्न लिया। वह रत्न चार दिशाओं तथा ऊपर-नीचे छह तलयुक्त था। ऊपर-नीचे एवं तिरछे-प्रत्येक ओर वह चार-चार कोटियों से युक्त था, यों बारह कोटियुक्त था। उसकी आठ कर्णिकाएँ थीं। स्वर्णकार लोह-निर्मित जिस पिण्डी (एरण) पर सोने, चाँदी आदि को पीटता है, उस पिण्डी के समान आकारयुक्त था। वह अष्ट सौवर्णिक था, तत्कालीन तोल के अनुसार आठ तोले वजन का था। वह प्रमाण में चार अंगुल का था। विष का नाश करने का अनुपम, चतुरस्र-संस्थानसंस्थित, समतल तथा समुचित मानोन्मानयुक्त था, उस समय लोक प्रचलित मानोन्मान व्यवहार का प्रामाणिक रूप में आधारभूत था। जिस गुफा के भीतरी अन्धकार को न चन्द्रमा नष्ट कर पाता था, न सूर्य ही जिसे मिटा सकता था, न अग्नि ही उसे दूर कर सकती थी तथा न अन्य मणियाँ ही जिसे मिटा सकती थीं। उस अन्धकार को वह काकणीरत्न नष्ट करता जाता था। उसकी दिव्य प्रभा बारह योजन तक फैली थी। चक्रवर्ती की छावनी में रात में दिन जैसा प्रकाश करते रहना उस मणि-रत्न का विशेष गुण था। उत्तर भरत क्षेत्र को विजय करने हेतु उसी के प्रकाश में राजा भरत ने सैन्य सहित तमिस्रा गुफा में प्रवेश किया। राजा भरत ने काकणीरत्न हाथ में लिए तमिस्रा गुफा की पूर्व दिशा तथा पश्चिम दिशा की भीतों पर एक-एक योजन के अन्तर से पाँच सौ धनुष चौड़े और एक योजन क्षेत्र को उद्योतित करने वाले, रथ के चक्के की भाँति गोल, चन्द्र-मण्डल की ज्यों उज्ज्वल प्रकाश करने वाले उनपचास मण्डल आलिखित किये। वह तमिस्रा गुफा राजा भरत द्वारा यों एक-एक योजन की दूरी पर आलिखित (पाँच सौ धनुष चौड़ा) एक योजन तक उद्योत करने वाले उनपचास मण्डलों से शीघ्र ही दिन के समान प्रकाशयुक्त हो गई। 70. Thereafter, king Bharat held the Mani Ratna in his hand. It was of a unique shape and was very beautiful. It was the best among all precious stone. It was of Vaidurya category. It was pleasant to every one It was loveable to all. One who keeps it on his head, he becomes free of all troubles. It could remove all miseries. The troubles created by subhumans, the celestial being and the men could not cause any pain due to its effect. It was not possible to kill with any weapon in battle the person | तृतीय वक्षस्कार (181) Third Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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