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southern side corner as earlier mentioned. He does celebrations for eight days and then informs compliance of the orders.
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卐 प्रभासतीर्थ-विजय CONQUEST OF PRABHAS TIRTH
६२. तए णं से दिव्वे चक्करयणे वरदामतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहिआए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २ ता अंतलिक्खपडिवण्णे जाव पूरते चेव अंबरतलं है उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पभासतित्थाभिमुहे पयाए यावि होत्था।
तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं जाव उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं तहेव जाव पच्चत्थिमदिसाभिमुहे , पभासतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहेइ २ ता जाव से रहवरस्स कुप्परा उल्ला जाव पीइदाणं से णवरं मालं मउडि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि अ तुडिआणि अ आभरणाणि अ सरं च णामाहयंकं पभासतित्थोदगं च ॥ गिण्हइ २ त्ता जाव पच्चत्थिमेणं पभासतित्थमेराए अहण्णं देवाणुप्पिआणं विसयवासी जाव पच्चत्थिमिल्ले अंतवाले, सेसं तहेव जाव अट्ठाहिआ निव्वत्ता।
६२. वरदाम तीर्थकुमार देव को विजय कर लेने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्टदिवसीय महोत्सव सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। बाहर निकलकर वह आकाश में 5
अधर अवस्थित हुआ। दिव्य वाद्यों के शब्द से गगन-मण्डल को आपूरित करते हुए उसने । 9. उत्तर-पश्चिम दिशा में प्रभास तीर्थ की ओर प्रयाण किया।
राजा भरत ने उस दिव्य चक्ररल का अनुगमन करते हुए, उत्तर-पश्चिम दिशा होते हुए, पश्चिम 卐 में, प्रभास तीर्थ की ओर जाते हुए, अपने रथ के पहिये भीगें, उतनी गहराई तक लवणसमुद्र में प्रवेश के
गे का वर्णन पर्वानसार है। वरदाम तीर्थकमार देव की तरह प्रभास तीर्थकमार देव ने राजा को प्रीतिदान के रूप में भेंट करने हेतु रत्नों की माला, मुकुट, दिव्य मुक्ता-राशि, स्वर्ण-राशि, कटक, त्रुटित, वस्त्र, अन्यान्य आभूषण, राजा भरत के नाम से अंकित बाण तथा प्रभासतीर्थ का जल राजा को भेंट किया और कहा कि मैं आप द्वारा विजित देश का वासी हूँ, पश्चिम दिशा का अन्तपाल (सीमारक्षक) हूँ। आगे का प्रसंग पूर्ववत् है। पहले की ज्यों राजा की आज्ञा से इस विजय के उपलक्ष्य में है अष्टदिवसीय महोत्सव सम्पन्न हुआ।
62. After celebrations of conquest of the ruler of Vardam Tirth for eight days, the divine Chakra Ratna came out from the ordnance store 51 and was stationed in the space without any support. Among the sound of beating of unique trumpets it moved toward Prabhas Tirth in the north, 15 west direction.
King Bharat followed that divine Chakra Ratna in the north and west direction towards Prabhas Tirth and thus entered Lavan Samudra up to such a depth that the wheels of his chariot became wet. Further description is the same as earlier mentioned. Like the guarding angel of ki
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(162)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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