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________________ ) ))) )))) 555555555555555555555555555步步步步步步步步步 camping at a distance of one yojan each during his march. Then, he reached Vardam Tirth. He then set up his army camp in an area of twelve yojan by nine yojan, which looked like a town. That camp was neither very near nor very far from Vardam Tirth. He then called his Vardhaki Ratna and said, 'O the blessed ! You quickly prepare a rest house and the Paushadhashala (place for observing austerities) for me and inform me after compliance. ॐ ६०. तए णं से आसम-दोणमुह-गाम-पट्टण-पुरवर-खंधावार-गिहावण-विभागकुसले जएगासीइपएसु सब्बेसु चेव वत्थूसु णेगगुणजाणए पंडिए विहिण्णू पणयालीसाए देवयाणं वत्थुपरिच्छाए ॐ मिपासेसु भत्तसालासु कोट्टणिसु अ वासघरेसु अ विभागकुसले छज्जे वेज्झे अ दाणकम्मे पहाणबुद्धी 卐 जलयाणं भूमियाणं य भायणे जलथलगुहासु जंतेसु परिहासु अ कालनाणे तहेव सहे वत्थुप्पएसे पहाणे गन्भिणिकण्णरुक्खवल्लिवेढिअगुणदोसविआणए गुणड्ढे सोलसपासायकरणकुसले चउसट्ठि-विकप्पवित्थियमई गंदावत्ते य वद्धमाणे सोत्थिअरुअग तह सबओभद्दसण्णिवेसे अ बहुविसेसे उइंडिअअदेवकोट्ठदारुगिरिखायवाहणविभागकुसले इह तस्स बहुगुणद्धे, थवईरयणे परिंदचंदस्स। तव-संजम-निविटे, किं करवाणी तुवट्ठाई॥१॥ सो देवकम्मविहिणा, संधावारं परिंद-वयणेणं। आवसहभवणकलिअं, करेइ सव्वं मुहुत्तेणं॥२॥ करेत्ता पवरपोसहघरं करेइ २ त्ता जेणेव भरहे राया (तणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता) एतमाणत्तिक 卐 खिप्पामेव पच्चप्पिणइ, सेसं तहेव जाव मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ २ ता जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेव चाउग्घंटे आसरहे तेणेव उवागच्छइ। 卐 ६०. वह शिल्पी (वर्द्धकिरत्न) आश्रम, द्रोणमुख, ग्राम, पट्टन, नगर, सैन्य-शिविर, गृह, आपण : इत्यादि की समुचित रचना करने में कुशल था। इक्यासी प्रकार के वास्तु-क्षेत्र का अच्छा जानकार था। उनके यथाविधि चयन और अंकन में निष्णात था। शिल्पशास्त्र के पैंतालीस प्रकार की वास्तु परीक्षा में ॥ कुशल विशेषज्ञ था। विविध परम्परानुगत भवनों, भोजनशालाओं, दुर्ग-भित्तियों, शयनगृहों के यथोचित : रूप में निर्माण करने में निपुण था। काठ आदि के छेदन-वेधन में, गैरिक लगे धागे से रेखाएँ अंकित है + कर नाप-जोख में कुशल था। जलगत तथा स्थलगत सुरंगों के, घटिकायन्त्र आदि के निर्माण में, खाइयों के के खनन में शुभ समय का जानकार, इनके निर्माण के प्रशस्त एवं अप्रशस्त रूप के परिज्ञान में प्रवीण था। शब्दशास्त्र में-शुद्ध नामादि चयन, अंकन, लेखन आदि में अपेक्षित व्याकरणज्ञान में, वास्तुप्रदेश में-विविध दिशाओं में देवपूजागृह, भोजनगृह, विश्रामगृह आदि के संयोजन में सुयोग्य था। भवन निर्माणोचित भूमि में उत्पन्न फल उत्पन्न करने वाली बेलों, निष्फल अथवा दूरफल बेलों, वृक्षों एवं उन 卐 पर छाई हुई बेलों के गुणों तथा दोषों को समझने में सक्षम था। प्रज्ञा, हस्तलाघव आदि गुणों से युक्त था। 895))))))))))))))))))))))))))))) 听听听听听听听听听听听听听听听听听$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFF | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (156) Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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