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श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
प्रस्तुत सूत्र जैन संस्कृति और इतिहास का ज्ञानकोष है। जैन भूगोल की दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र है। इस सूत्र को मनोयोग पूर्वक पढ़ लेने व समझ लेने से जैन संस्कृति की बहुत-सी अविज्ञात महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिल जाती हैं।
इस शास्त्र में मुख्य रूप से जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन किया गया है। मानव-क्षेत्र, पर्वत, नदियाँ, मेरू पर्वत उसकी प्रदक्षिणा करते सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र आदि जम्बूद्वीप की सम्पूर्ण भौगोलिक स्थिति, कालचक्रउत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का सम्पर्ण जीवन चरित्र तथा प्रथमचक्रवर्ती सम्राट भरत की षट्खण्ड विजय का सर्वांगीण वर्णन भी इस आगम में मिलता है।
इस आगम को सात वक्षस्कार (प्रकरण) में बाँटा गया है।
श्री जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र जैन आगमों का अंग उपांग आदि के रूप में जो विवेचन हुआ उसके अनुसार जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र छठा उपांग है।
प्रस्तुत जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र का मुख्य प्रतिपाद विषय जम्बूद्वीप का वर्णन हैं सभी द्वीप समुद्रों के मध्य बसा हमारा जम्बूद्वीप एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है। इस आगम के सात वक्षस्कार हैं। जिनमें जम्बूद्वीप का परिचय, अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल, भगवान ऋषभदेव का जीवन चरित्र, भरत चक्रवर्ती की दिग्विजय यात्रा वैराग्य प्राप्ति, केवल्य ज्ञान प्राप्ति का वर्णन, महाविदेह क्षेत्र का वर्णन एवं ज्योतिष्य चक्र की जानकारियाँ दी गई हैं।
इन भौगोलिक वर्णनों को समझाने के लिए हमने प्राचीन ताड़पत्रिय चित्रों को दुबारा हाथ से बनाकर नई रंग सज्जा देकर प्रस्तुत किया है। जिससे पाठकगण जटिल विषयों को भी आसानी से समझ सकेंगे।
सरल अंग्रेजी अनुवाद भी साथ ही दिया गया है।
• यह आगम जैन भूगोल की जानकारी प्राप्त करने के उत्सुक जिज्ञासु पाठकों के लिये एक रिसर्च वर्क सिद्ध होगा। यह ग्रन्थ श्रद्धा और विश्वास पूर्वक पढ़ने पर 'लोक भावना' की अनुप्रेक्षा करने में भी सहायक सिद्ध होगा।
SHRI JAMBUDVEEP
PRAJNAPTI SUTRA This work is a compendium of Jain culture and history. It is an important reference work on Jain geography. A careful study of this book would reveal important but lesser known information about Jain culture. The main theme of this book is detailed description of Jambudveep. It includes all enveloping description of the geography and cosmology including various topics like inhabited areas, mountains, rivers, Meru mountain and the sun, the moon, planets and constellations moving around it. This Agam also contains complete details about regressive and progressive time cycle, the life of the first Tirthankar. Bhagavan Rishabhdev and the Emperor Bharat's conquest of the six divisions of Bharat area. This Agam is divided into seven chapters (Vakshaskars).
JAMBUDVEEP PRAJNAPTI In the traditional classification of Jain Agamic literature Jambudveep Prajnapti is the sixth Upanga.
The central theme of Jambudveep Prajnapti is this Jambu continent with an expanse of one hundred thousand yojans situated at the center of all islands and seas. Its shape is circular like a wheel.
This book has its unique importance in the spiritual field. The geographical description of this area is its fulcrum of the concern for the world of the living.
. This edition has been prepared after detailed study of ancient palm-leaf manuscripts in order to give new illustration of the complex map of Jambudveep. Readers will find it easy to understand.
Multi coloured printings lively and vividly present some incidents from the lives of Bhagavan Rishabhdev and Bharat Chakravarti.
For curious readers this Agam will prove to be a reference book for their research. For Free Personal use only
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