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5 भो देवाणुष्पिआ ! हय-गय-रह- पवरजोहकलिअं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेह, चाउग्घंटं आसरहं ५
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५७. [ २ ] तब राजा भरत आभिषेक्य हस्तिरत्न से नीचे उतरा। नीचे उतरकर जहाँ पौषधशाला ५ थी, वहाँ आया। आकर पौषधशाला में प्रविष्ट हुआ, पौषधशाला का प्रमार्जन किया, सफाई की। प्रमार्जन कर दर्भ - डाभ का बिछौना बिछाया। बिछौना बिछाकर उस पर स्थित हुआ-बैठकर उसने मागध 5 तीर्थकुमार देव को उद्दिष्ट कर तत्साधना हेतु तीन दिनों का उपवास - तेले की तपस्या स्वीकार की । ५ तपस्या स्वीकार कर पौषधशाला में पौषध व्रत स्वीकार किया । मणिस्वर्णमय आभूषण शरीर से उतार दिये। माला, वर्णक - चन्दनादि सुगन्धित पदार्थों के देहगत विलेपन आदि दूर किये, शस्त्र - कटार आदि, ५ मूसल - दण्ड, गदा आदि हथियार एक ओर रखे । यों डाभ के बिछौने पर अवस्थित राजा भरत निर्भय ५ भाव से आत्मबलपूर्वक तेले की तपस्या में प्रतिजागरित - सावधानी से संलग्न हुआ ।
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पडिकप्पेहत्ति कट्टु मज्जणघरं अणुपविसइ २ त्ता समुत्त० तहेव जाव धवलमहामेहणिग्गए इव ससिव्य ५ पियदंसणे णरवई मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता हयगयरहपवरवाहण सेणाए पहिअकित्ती जेणेव बाहिरिआ उबट्ठाणसाला, जेणेव चाउग्घंटे आसरहे, तेणेव उवागच्छइ २ त्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरूढे।
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तेले की तपस्या परिपूर्ण हो जाने पर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। आकर अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर उन्हें
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इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो ! घोड़े, हाथी, रथ एवं उत्तम योद्धाओं - पदातियों से सुशोभित चतुरंगिणी सेना को शीघ्र सुसज्ज करो। चातुर्घंट-चार घंटाओं से युक्त - अश्वरथ तैयार करो। यों कहकर राजा # स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। प्रविष्ट होकर, स्नानादि से निवृत्त होकर राजा स्नानघर से निकला । वह श्वेत, विशाल बादल से निकले, ग्रहगण से देदीप्यमान, आकाश - स्थित तारों के मध्यवर्ती चन्द्र के सदृश देखने ५ में बड़ा प्रिय लगता था । स्नानघर से निकलकर घोड़े, हाथी, रथ, अन्यान्य उत्तम वाहन तथा सेना से सुशोभित वह राजा जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, चार घण्टा वाला अश्वरथ था, वहाँ आया। आकर 4 6 रथारूढ़ हुआ ।
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F 57. [2] Then king Bharat got down from the elephant (Hasti Ratna) f and came to Paushadhashala. He entered in it, cleaned it, spread a bed of hay and then sat on it. He then observed three day fast concentrating his mind on Magadh Tirth Kumar Dev. He removed the jewel-studded ornaments from his body. He also removed the garlands, the fragrant substances like Sandal paste from his body. He kept the sword, the dumble and other suchlike weapons aside. Then staying on the bed of y hay, king Bharat in a fearless, cautious and fully awakened state engaged his soul completely in three day austerities.
After completion of three day austerities king Bharat came out of Paushadhashala. He then came to the assembly hall. He called his officials and ordered, 'O the blessed of gods! You prepare quickly the horses, the elephants, the chariots and the four tier army. Also prepare तृतीय वक्षस्कार Third Chapter
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