________________
signs. He commanded undisturbed control. His parental side and maternal side were both excellent and unpolluted. He was shining like full moon in sky of his family. He was pleasant like the moon and was always pleasing to the eyes and to the mind. He was poised and stable like the sea. He was properly spending his wealth like Kuber in the articles of consumption. He was always undefeated in the battle and had great strength. His enemies had been eliminated. Thus, he was happily enjoying the state administration. चक्ररत्न की उत्पत्ति : अर्चा : महोत्सव APPEARING OF THE CHAKRA : WELCOME CEREMONY
५३. तए णं तस्स भरहस्स रण्णो अण्णया कयाइ आउहघरसालाए दिवे चक्करयणे समुप्पज्जित्था।
तए णं से आउहरिए भरहस्स रण्णो आउहघरसालाए दिव्वं चक्करयणं समुप्पण्णं पासइ, पासित्ता हट्ट तुट्ठ चित्तमाणदिए, णदिए, पीइमणे, परमसोमणस्सिए, हरिसवस-विसप्पमाणहियए जेणामेव दिव्वे : + चक्करयणे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता
करयल-(परिग्गहिअदसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं) कटु चक्करयणस्स पणामं करेइ, करेत्ता ॐ आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणामेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणामेव भरहे राया,
तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता करयल-जाव-जएणं विजएणं वद्धावेइ, बद्धावेत्ता एवं वयासी-एवं खलु
देवाणुप्पियाणं आउहघरसालाए दिव्वे चक्करयणे समुप्पण्णे, तं एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियद्वयाए पियं मणिवेएमि, पियं भे भयउ।" म तए णं से भरहे राया तस्स आउहघरियस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म हटु-सोमणस्सिए, वियसिय-वरकमलणयण-वयणे,
पयलिअवरकडग-तुडिअ-केऊर-मउड-कुण्डलहारविरायंतरइअवच्छे, पालंबपलंबमाणघोलंतभूसणधरे, ससंभमं, तुरिअं, चवलं परिंदे सीहासणाओ
अब्भुढेइ, अन्भुट्टित्ता पायपीढाओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता पाउआओ ओमुअइ, आमुइत्ता एगसाडिअं ॐ उत्तरासंगं करेइ, करेत्ता अंजलिमउलिअग्गहत्थे चक्करयणाभिमुहे सत्तटुपयाई अणुगच्छइ, अणुगच्छित्ता
वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणितलंसि णिहट्ट करयल-जाव-अंजलिं कटु चक्करयणस्स
पणामं करेइ, करेत्ता तस्स आउहपरियस्स अहामालियं मउडवज्जं ओमोयं दलयइ, दलिइत्ता विउलं # जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ, दलइत्ता सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारेत्ता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जेत्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे।
५३. एक दिन राजा भरत की आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ। ॐ आयुधशाला के अधिकारी ने राजा भरत की आयुधशाला में समुत्पन्न दिव्य चक्ररत्न को देखा।
देखकर वह हर्षित एवं परितुष्ट हुआ, चित्त में आनन्द तथा प्रसन्नता का अनुभव करता हुआ अत्यन्त
सौम्य मानसिक भाव और हर्षातिरेक से विकसित हृदय हो उठा। जहाँ दिव्य चक्ररत्न था, वहाँ आया, के तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की (हाथ जोड़ते हुए उन्हें मस्तक के चारों ओर घुमाते हुए अंजलि बाँधे)। | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(130)
Jambudveep Prajnapti Sutra
$55555555FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF听听听听听听
卐55555555555555555555555555555555555555555555558
R55555555454545455545454545455454554545454545545454555円
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org