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________________ தமிழிழமிழதததததததததத****************************தமிழிழில் 5 5 卐 卐 In the third chapter the adventure of Bharat Chakravarti for conquering six parts, fourteen ( unique) jewels, the appearance of nine types of wealth (nidhi) the grandeur of kingdom of Bharat, his nonattachment from mundane world, his renunciation, his attainment of omniscience and then his liberation (from cycles of birth and death) has 5 been described. O 卐 5 卐 卐 5 卐 ५१. [ प्र. ] भगवन् ! भरत क्षेत्र को 'भरत क्षेत्र' किस कारण से कहते हैं ? के [उ. ] गौतम ! भरत क्षेत्र स्थित वैताढ्य पर्वत के दक्षिण के ११४११ योजन तथा लवणसमुद्र उत्तर में ११४१ योजन की दूरी पर, गंगा महानदी के पश्चिम में और सिन्धु महानदी के पूर्व में फ दक्षिणार्ध भरत के मध्यवर्ती तीसरे भाग (खण्ड) के ठीक बीच में विनीता नामक राजधानी है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी एवं उत्तर-दक्षिण चौड़ी है। वह लम्बाई में बारह योजन तथा चौड़ाई में नौ योजन है। वह ऐसी है, मानो धनपति - कुबेर ने अपने बुद्धि-कौशल से उसकी रचना की हो। स्वर्णमय-परकोटों, 5 5 उपोद्घात INTRODUCTION प्रस्तुत तृतीय वक्षस्कार में भरत चक्रवर्ती के षट्खण्ड विजय के अन्तर्गत विजय यात्रा, चौदह रत्न, नवनिधि की उत्पत्ति भरत के राज्य-वैभव तथा अन्त में वैराग्य, दीक्षा एवं केवलज्ञान-प्राप्ति व निर्वाण तक का वर्णन है। विनीता राजधानी CAPITAL CITY VINITA तृतीय वक्षस्कार THIRD CHAPTER फ्र उस पर लगे विविध प्रकार के मणिमय पंचरंगे - कंगूरों (भीतर से शत्रु सेना को देखने आदि हेतु निर्मित ५१. [ प्र. ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ-भरहेवासे भरहेवासे ? [उ. ] गोयमा ! भरहे णं वासे वेअड्डस्स पव्वयस्स दाहिणेणं चोद्दसुत्तरं जोअणसयं एक्कारस य गूणबीसइभाए जोअणस्स, अबाहाए लवणसमुद्दस्स उत्तरेणं चोद्दसुत्तरं जोअणसयं एक्कारस य बीसइभाए जोअणस, अबाहाए गंगाए महाणईए पच्चत्थिमेणं, सिंधूए महाणईए पुरत्थिमेणं, दाहिणद्ध भरह - मज्झिल्लतिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं विणीआ णामं रायहाणी पण्णत्ता । पाईणपडीणायया, उदीणदाहिणवित्थिण्णा, दुवालसजोअणायामा, णवजोअणवित्थिण्णा, धणवइमतिणिभ्माया, 5 चामीयरपागार - णाणामणि - पञ्चवण्णकविसीसग - परिमंडिआभिरामा, अलकापुरीसंकासा पमुइयपक्कीलिआ, पच्चक्खं देवलोगभूआ, रिद्धित्थिमिअसमिद्धा, पमुइअजणजाणवया जाव पडिरूवा । बन्दर के मस्तक के आकार के छेदों से) सुशोभित एवं रमणीय है। वह अलकापुरी जैसी है। वहाँ अनेक प्रकार के आनन्दोत्सव, खेल आदि चलते रहते हैं। मानो प्रत्यक्ष स्वर्ग का ही रूप हो, ऐसी लगती है। वह जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र वैभव, सुरक्षा तथा समृद्धि से युक्त है। वहाँ के नागरिक एवं जनपद के अन्य भागों से आये हुए व्यक्ति Jambudveep Prajnapti Sutra Jain Education International (124) फफफफफफफ 5 卐 卐 卐 For Private & Personal Use Only फ्र 卐 फ्र 卐 卐 卐 卐 5 5 5 卐 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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