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सुषम-दुषमा आरक SUKHAM-DUKHMA AEON
५०. [३] तीसे णं समाए सागरोवमकोडाकोडीए बायालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले + वीइक्कंते अणंतेहिं वण्णपज्जवेहिं जाव अणंतगुणपरिवुद्धीए परिवद्धेमाणे २ एत्थ णं सुसम-दूसमा णामं * समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !
सा णं समा तिहा विभज्जिस्सइ-पढमे तिभागे, मज्झिमे तिभागे, पच्छिमे तिभागे।
[प्र. ] तीसे णं भंते ! समाए पढमे तिभाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोयारे भविस्सइ ? __ [उ. ] गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे जाव भविस्सइ। मणुआणं जा वेव ओसप्पिणीए पच्छिमे तिभागे .
वत्तव्वया सा भाणिअव्वा, कुलगरवज्जा उराभसामिवज्जा। ____ अण्णे पढंति तं जहा-तीसे णं समाए पढमे तिभाए इमे पण्णरस कुलगरा समुप्पज्जिस्संति तं जहा-सुमई, पडिस्सुई, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, चक्खुमं, जसमं, अभिचंदे, चंदाभे, पसेणई, मरुदेवे, णाभी, उसभे, सेसं तं चेव, दंडणीईओ पडिलोमाओ णेअब्बाओ।
तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे (गणधम्मे पाखंडधम्मे अग्गिधम्मे) धम्मचरणे अ वोच्छिज्जिस्सइ।
तीसे णं समाए मज्झिमपच्छिमेसु तिभागेसु पढममज्झिमेसु वत्तव्वया ओसप्पिणीए सा भाणिअव्वा, सुसमा तहेव, सुसमसुसमा वि तहेव जाव छविहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति जाव सण्णिचारी।
५०. [३] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस आरक का बयालीस हजार वर्ष कम एक सागरोपम F कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी काल का सुषम-दुषमा नामक चतुर्थ आरक प्रारम्भ ॐ होगा। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि अनन्त गुण परिवृद्धि क्रम से परिवर्द्धित होंगे।
वह काल तीन भागों में विभक्त होगा-प्रथम तृतीय भाग, मध्यम तृतीय भाग तथा अन्तिम तृतीय भाग।
[प्र.] भगवन् ! उस काल के प्रथम विभाग में भरत क्षेत्र का आकार/स्वरूप कैसा होगा? ॐ [उ. ] गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा। अवसर्पिणी काल के सुषम+ दुषमा आरक के अन्तिम तृतीयांश में जैसे मनुष्य बताये गये हैं, वैसे ही इसमें होंगे। केवल इतना अन्तर होगा, इसमें कुलकर नहीं होंगे, भगवान ऋषभ नहीं होंगे।
इस संदर्भ में अन्य आचार्यों का कथन इस प्रकार है-उस काल के प्रथम त्रिभाग में पन्द्रह ॐ कुलकर होंगे-(१) सुमति, (२) प्रतिश्रुति, (३) सीमंकर, (४) सीमन्धर, (५) क्षेमकर, (६) क्षेमंधर, 卐 () विमलवाहन, (८) चक्षुष्मान्, (९) यशस्वान्, (१०) अभिचन्द्र, (११) चन्द्राभ, (१२) प्रसेनजित्,
(१३) मरुदेव, (१४) नाभि, (१५) ऋषभ। शेष उसी प्रकार हैं। दण्डनीतियाँ प्रतिलोम-विपरीत क्रम से ऊ होंगी, ऐसा समझना चाहिए।
उस काल के प्रथम विभाग में राज-धर्म (गण-धर्म, पाखण्ड-धर्म, अग्नि-धर्म) तथा चारित्र-धर्म विच्छिन्न हो जायेगा।
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जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudweep Prajnapti Sutra
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