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________________ फ्रफ़ फ्र [उ. ] गोयमा ! ओसण्णं णरग-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जिर्हिति । [प्र.] तीसे णं भंते ! समाए सीहा, वग्घा, विगा, दीविआ, अच्छा, तरस्सा, परस्सरा, सरभसियाल - बिराल - सुणगा, कोलसुणगा, ससगा, चित्तगा, चिल्ललगा ओसण्णं मंसाहारा, मच्छाहारा, खोहाहारा, कुणिमाहारा कालमासे कालं किच्चा कहिं गच्छिर्हिति कर्हि उववज्जिर्हिति ? [उ. ] गोयमा ! ओसण्णं णरग-तिरिक्खजोणिएसु उववज्जिर्हिति । [प्र.] ते णं भंते ! ढंका, कंका, पीलगा, मग्गुगा, सिही ओसण्णं मंसाहारा, कहिं गच्छिहिंति कहिं उववज्जिहिंति ? [ उ. ] गोयमा ! ओसण्णं णरग-तिरिक्खजोणिएसु-उववज्जिर्हिति । ४६. [ प्र. ३ ] भगवन् ! वे मनुष्य कैसा आहार करेंगे ? [उ.] गौतम ! उस काल में गंगा महानदी और सिन्धु महानदी ये दो नदियाँ रहेंगी। रथ चलने के लिए अपेक्षित पथ जितना मात्र उनका विस्तार होगा। उनमें रथ के चक्र के छेद की गहराई जितना गहरा जल रहेगा। उनमें अनेक मत्स्य तथा कच्छप- कछुए रहेंगे। उस जल में सजातीय अप्काय के जीव नहीं होंगे। वे मनुष्य सूर्योदय के समय तथा सूर्यास्त के समय अपने बिलों से तेजी से दौड़कर निकलेंगे। बिलों से निकलकर मछलियों और कछुओं को पकड़ेंगे, किनारे पर लायेंगे। किनारे पर लाकर रात में शीत द्वारा तथा दिन में आतप द्वारा उनको रसरहित बनायेंगे, सुखायेंगे। इस प्रकार वे अतिसरस खाद्य को पचाने में असमर्थ अपनी जठराग्नि के अनुरूप उन्हें आहार योग्य बना लेंगे। इस आहार - र-वृत्ति द्वारा वे इक्कीस हजार वर्ष पर्यन्त अपना निर्वाह करेंगे। [प्र.] भगवन् ! वे मनुष्य, जो शीलरहित - आचाररहित, महाव्रत- अणुव्रतरहित, उत्तरगुणरहित, कुल आदि की मर्यादाओं से रहित, त्याग, पौषध व उपवासरहित होंगे, प्रायः माँसभोजी, मत्स्यभोजी, यत्र-तत्र अवशिष्ट तुच्छ धान्यादिकभोजी, कुणिमभोजी - वसा या चर्बी आदि दुर्गन्धित पदार्थ खाने वाले होंगे। अपना आयुष्य समाप्त होने पर मरकर कहाँ जायेंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे ? [उ. ] गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यंचगति में उत्पन्न होंगे। [प्र.] भगवन् ! उस काल में सिंह, बाघ, भेड़िए, चीते, रीछ, तरक्ष- बाघ जाति के हिंसक जन्तु - जैसे गेंडे, शरभ - अष्टापद, शृगाल, बिलाव, कुत्ते, जंगली कुत्ते या सूअर, खरगोश, चीतल तथा चिल्ललक, जो प्रायः माँसाहारी, मत्स्याहारी, क्षुद्राहारी तथा कुणपाहारी होते हैं, मरकर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे ? [उ. ] गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में उत्पन्न होंगे। [प्र.] भगवन् ! ढंक-काक विशेष, कंक-कठफोड़ा, पीलक, मद्गुक-जल काक, शिखी - मयूर, जो प्रायः माँसाहारी होते हैं, मरकर कहाँ जायेंगे ? कहाँ उत्पन्न होंगे। [.] गौतम ! वे प्रायः नरकगति और तिर्यञ्चगति में जायेंगे । द्वितीय वक्षस्कार (113) Jain Education International 695 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55 55555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 Second Chapter For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002911
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages684
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_jambudwipapragnapti
File Size21 MB
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