________________
F
F
फफफफफफफफफफफफफफफ
फ्र
[Q] Reverend Sir! What is the figure and the nature of human 卐 beings at that time?
फ्र
[Ans.] Gautam ! Those human beings have all the six types of bone joints and all the six types of shapes. Their height is of many dhanush. 5 The minimum life-span is antar-muhurt (less than 48 minutes) and the h maximum is 10 million purva. Thereafter, they are reborn either in hell, in sub-human state, in human state or as celestial beings. Some of them end all the miseries of mundane world and directly attain liberation.
फ्र
卐
In that period, three clans come up namely - Arhat family, फ्र Chakravarti family and Dashar family which includes Baladevas and Vasudevas. In that aeon twenty three Tirthankars, eleven Chakravartis, nine Baladevas and nine Vasudevas take birth.
अवसर्पिणी : दुषमा आरक AVASARPANI DUKHAMA AEON
४५. तीसे णं समाए एक्काए सागरोवमकोडाकोडीए बयालीसाए वाससहस्सेहिं ऊणिआए काले वीइक्कंते अनंतेहिं वण्णपज्जेवेहिं तहेव जाव परिहाणीए परिहायमाणे २ एत्थ णं दूसमाणामं समा काले पडिवज्जिस्सइ समणाउसो !
[प्र.] तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स केरिसए आयारभावपडोआरे भविस्सइ ?
[उ.] गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे भविस्सइ, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा मुइंगपुक्खरेइ वा जाव णाणामणिपंचवण्णेहिं कत्तिमेहिं चेव अकत्तिमेहिं चेव ।
[प्र. ] तीसे णं भंते ! समाए भरहस्स वासस्स मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे पण्णत्ते ?
[ उ. ] गोयमा ! तेसिं मणुआणं छव्विहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, बहुइओ रयणीओ उद्धं उच्चत्तेणं, जहणणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं साइरेगं वाससयं आउअं पालेंति, पालेत्ता अप्पेगइआ णिरयगामी, जाव 5 सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
5
तणं समाए पच्छिमेतभागे गणधम्मे, पासंडधम्मे, रायधम्मे, जायतेए, धम्मचरणे अ वोच्छिज्जिस्सइ ।
5
[प्र.] भगवन् ! उस काल में भरत क्षेत्र का कैसा आकार/स्वरूप होता है ?
[उ.] गौतम ! उस समय भरत क्षेत्र का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। वह मुरज के. मृदंग के ऊपरी भाग- जैसा समतल होता है, विविध प्रकार की पाँच वर्णों की कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणियों द्वारा उपशोभित होता है।
द्वितीय वक्षस्कार
卐
फ्र
फ्र
5
४५. आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय के चतुर्थ आरक के बयालीस हजार वर्ष कम एक फ्र सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर अवसर्पिणी-काल का दुःषमा नामक पंचम आरक प्रारम्भ होता है । उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि का क्रमशः ह्रास होता जाता है।
卐
Jain Education International
(105)
For Private & Personal Use Only
卐
5
卐
Second Chapter
फ्र
फ्र
www.jainelibrary.org.