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उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स सेज्जंसपामोक्खाओ तिण्णि समणोवासगसयसाहस्सीओ पंच य फ्र साहस्सीओ उक्कोसिआ समणोदासग-संपया होत्था, उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स சு 5 सुभद्दापामोक्खाओ पंच समणोवासिआसयसाहस्सीओ चउपण्णं च सहस्सा उक्कोसिआ समणोवासिआ - 5 संपया होत्था, उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स अजिणाणं जिणसंकासाणं, सव्वक्खरसन्निवाईणं, जिणो 5 विव अवितहं वागरमाणाणं चत्तारि चउद्दसपुव्वीसहस्सा अद्धट्ठमा य सया उक्कोसिआ चउदसपुबी - संपया 5 होत्था, उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स णव ओहिणाणिसहस्सा उक्कोसिआ ओहिणाणि - संपया 5 होत्था, उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीसं जिणंसहस्सा, वीसं वेउव्विअसहस्सा छच्च सया
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5 छच्चसया पण्णासा, बारस वाईसहस्सा छच्च सया पण्णासा, उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स फ्र गइकल्लाणाणं, ठिइकल्लाणाणं, आगमेसिभद्दाणं, बावीसं अणुत्तरोववाइआणं सहस्सा णव य सया 5 उक्कोसिआ अणुत्तरोववाइय-संपया होत्था ।
उसभस्स णं अरहओ कोसलिअस्स वीसं समणसहस्सा सिद्धा, चत्तालीसं अज्जिआसहस्सा सिद्धा, सट्ठि अंतेवासीसहस्सा सिद्धा ।
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उक्कोसिआ जिण - संपया वेउब्विय-संपया य होत्था, अरहओ कोसलिअस्स बारस विउलमइसहस्सा
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अरहओ णं उसभस्स बहवे अंतेवासी अणगारा भगवंतो - अप्पेगइआ मासपरिआया, जहा उववाइए सव्वओ अणगारवण्णओ, जाव उद्धंजाणू अहोसिरा झाणकोट्ठोवगया संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणा विहरंति ।
कौशलिक अर्हत् ऋषभ के चौरासी गण, चौरासी गणधर, ऋषभसेन आदि चौरासी हजार श्रमण, ब्राह्मी, सुन्दरी आदि तीन लाख श्रमणियाँ श्रेयांस आदि तीन लाख पाँच हजार श्रमणोपासक, सुभद्रा 5 आदि पाँच लाख चौवन हजार श्रमणोपाासिकाएँ, जिन नहीं पर जिन सदृश सर्वाक्षर-संयोग- वेत्ता 15 जिनवत् यथार्थ - सत्य-अर्थ-निरूपक चार हजार सात सौ पचास चतुर्दश - पूर्वधर श्रुतकेवली, नौ हजार अवधिज्ञानी, बीस हजार जिन सर्वज्ञ, बीस हजार छह सौ वैक्रियलब्धिधर, बारह हजार छह सौ पचास 15 वादी तथा गति - कल्याणक - देवगति में दिव्य सातोदय रूप कल्याणयुक्त, स्थितिकल्याणक - देवायुरूप
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अरहओ णं उसभस्स दुविहा अंतकरभूमी होत्था, तं जहा - जुगंतकरभूमी अ परिआयंतकरभूमी य जुगतकरभूमी जाव असंखेज्जाई पुरिसजुगाई, परियाआयंतकरभूमी अंतोमुहुत्तपरिआए अंतमकासी ।
३८. [३] भगवान ऋषभ निर्ग्रन्थों-निर्ग्रन्थियों, श्रमण-श्रमणियों को पाँच महाव्रतों, उनकी भावनाओं तथा जीव - निकायों का उपदेश देते हुए विचरण करते । (पाँच महाव्रतों की भावनाओं का वर्णन आचारांग सूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध भावनाध्ययन में देखें ।)
5 में उत्पन्न होने वाले बाईस हजार नौ सौ मुनि थे ।
. स्थितिगत सुख - स्वामित्वयुक्त, आगमिष्यद्भद्र - आगामी भव में सिद्धत्व प्राप्त करने वाले अनुत्तर विमानों
कौशलिक अर्हत् ऋषभ के बीस हजार श्रमणों तथा चालीस हजार श्रमणियों ने सिद्धत्व प्राप्त
फ्र किया-यों उनके साठ हजार अंतेवासी सिद्ध हुए ।
द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter
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