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ऐसी अभिलाषा करते थे। भगवान ऋषभ सहस्रों नर-नारियों द्वारा अपने हजारों हाथों से उपस्थापित अंजलिमाला को अपना दाहिना हाथ ऊँचा उठाकर स्वीकार करते जाते थे, अत्यन्त कोमल वाणी से उनका कुशल-क्षेम पूछते जाते थे। यों वे घरों की हजारों पंक्तियों को लाँघते हुए आगे बढ़े।)
सिद्धार्थवन की ओर जाने वाले राजमार्ग पर जल का छिड़काव कराया हुआ था। वह झाड़बुहारकर स्वच्छ कराया हुआ था, सुरभित जल से सिक्त था, शुद्ध था, वह स्थान-स्थान पर पुष्पों से सजाया गया था, घोड़ों, हाथियों तथा रथों के समूह, पैदल चलने वाले सैनिकों के समूह के चलने से जमीन पर जमी हुई धूल धीरे-धीरे ऊपर की ओर उड़ रही थी। इस प्रकार चलते हुए वे जहाँ सिद्धार्थवन उद्यान था, जहाँ उत्तम अशोक वृक्ष था, वहाँ आये। आकर उस उत्तम वृक्ष के नीचे शिविका को रखवाया, उससे नीचे उतरे। नीचे उतरकर स्वयं अपने गहने उतारे। गहने उतारकर उन्होंने स्वयं चार मुष्टियों द्वारा अपने केशों का लोच किया। इस दिन निर्जल बेला किया। फिर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर अपने चार हजार उग्र-आरक्षक अधिकारी, भोग-विशेष रूप से समादत राजपुरुष या अपने मंत्रिमंडल के सदस्य, राजन्य-राजा द्वारा वयस्य रूप में-मित्र रूप में स्वीकृत विशिष्ट जन या राजा के परामर्शक मण्डल के सदस्य, क्षत्रिय-क्षत्रिय वंश के राजकर्मचारीवृन्द के साथ एक देवदूष्य-दिव्य वस्त्र ग्रहण कर मुण्डित होकर गृहस्थावस्था से साधुत्व में प्रव्रजित हो गये।
37. [3] The sky was resounding with the words of the people. In this condition Bhagavan Rishabh came out from the city capital. Thousands of men and women were looking at him repeatedly (Thousands of men and women were praising him. Thousands of men and women were expressing the desire that they may remain close to him and the like. Thousands of men and women were repeatedly singing in his praise. Thousands of men and women were desiring that they may always hav such a ruler as he was having shining face and many grand qualities. Bhagavan Rishabh was accepting their gratitude by raising his right hand upwards and was asking about their welfare. Thus, he moved ahead passing through thousands of rows of houses.)
Water was already sprinkled on the highway leading to Siddharth forest. It was already cleaned of bushes. It was drenched with fragrant water. It was clean. It was decorated with flowers. The dust that had collected due to the movement of horses, elephants, chariots, infantry was slowly moving upwards. Thus going in this manner, they reached Siddharth garden and placed the palanquin under Ashok tree. Rishabh hen came down. He removed his ornaments himself. He then removed he hair of his head in four pluckings. He was on two day fast without
en water at that time. Then in Uttarashadha constellation when it was with the moon, four thousand men who belonged to the status
द्वितीय वक्षस्कार
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Second Chapter
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