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down enkindling (bhaavit) his soul with ascetic-discipline and austerities, please inform me.” With these words he allowed the reporter to go.
विवेचन-सम्राट् कूणिक : एक चिन्तन-चम्पा का अधिपति सम्राट कूणिक था। कूणिक का प्रस्तुत आगम में विस्तार से निरूपण है। वह भगवान महावीर का परम भक्त था। उसकी भक्ति का जीता-जागता चित्र इसमें चित्रित है। उसी तरह कूणिक अजातशत्रु को बौद्ध परम्परा में भी बुद्ध का परम भक्त माना है। सामञ्जफलसुत्त के अनुसार तथागत बुद्ध के प्रथम दर्शन में ही वह बौद्ध धर्म को स्वीकार करता है। बुद्ध की अस्थियों पर स्तूप बनाने के लिए जब बुद्ध के भग्नावशेष बाँटे जाने लगे, तब अजातशत्रु ने कुशीनारा के मल्लों को कहलाया कि “बुद्ध भी क्षत्रिय थे, मैं भी क्षत्रिय हूँ, अतः अवशेषों का एक भाग मुझे मिलना चाहिए।" द्रोणवीर की सलाह से उसे एक अस्थि भाग मिला और उसने उस पर एक स्तूप बनवाया।
यह सहज ही जिज्ञासा हो सकती है कि अजातशत्रु कुणिक जैन था या बौद्ध था? उत्तर में निवेदन है कि प्रस्तुत आगम में जो वर्णन है, उसके सामने सामञ्जफलसुत्त का वर्णन शिथिल है, उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है। सामञ्जफलसुत्त में केवल इतना ही वर्णन है कि आज से भगवान मुझे अंजलिबुद्ध शरणागत उपासक समझें, पर प्रस्तुत आगम में श्रमण भगवान महावीर के प्रति अनन्य भक्ति कूणिक की प्रदर्शित की गई है। उसने एक प्रवृत्तिवादक (संवाददाता) व्यक्ति की नियुक्ति की थी। उसका कार्य था भगवान महावीर की प्रतिदिन की प्रवृत्ति से उसे अवगत कराते रहना। उसकी सहायता के लिए अनेक कर्मकर नियुक्त थे, उनके माध्यम से भगवान महावीर के प्रतिदिन के समाचार उस प्रवृत्तिवादक को मिलते और वह राजा कूणिक को बताता था। उसे कूणिक विपुल अर्थदान देता था। प्रवृत्तिवादक द्वारा समाचार ज्ञात होने पर भक्ति-भावना से विभोर होकर अभिवन्दन करना, उपदेश श्रवण के लिए जाना और निर्ग्रन्थ धर्म पर अपनी अनन्य श्रद्धा व्यक्त करना। इस वर्णन के सामने तथागत बुद्ध के प्रति जो उसकी श्रद्धा है, वह केवल औपचारिक है।
अजातशत्रु कूणिक का बुद्ध से साक्षात्कार केवल एक बार होता है, पर भगवान महावीर से उसका साक्षात्कार अनेक बार होता है। भगवान महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् भी महावीर के उत्तराधिकारी गणधर सुधर्मा की धर्मसभा में भी वह उपस्थित होता है और बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में जिन-प्रवचन की श्रेष्ठता का कथन करता है। ___ डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी ने लिखा है-“महावीर और बुद्ध की वर्तमानता में तो अजातशत्रु महावीर का ही अनुयायी था।" उन्होंने आगे चलकर यह भी लिखा है, जैसा प्रायः देखा जाता है, जैन अजातशत्रु और उदाईभद्द दोनों को अच्छे चरित्र का बतलाते हैं, क्योंकि दोनों जैनधर्म को मानने वाले थे। यही कारण है कि बौद्ध ग्रन्थों में उनके चरित्र पर कालिख पोती गई।
बौद्ध साहित्य के ग्रन्थ अट्ठकथा, अवदान शतक, धम्मपद अट्ठकथा आदि के गम्भीर अनुशीलन से यह स्पष्ट नहीं होता कि वह तथागत के प्रति विशेष समर्पित था। कहीं-कहीं बुद्ध के प्रति उसके द्वेषभाव की सूचना भी मिलती है।
समवसरण अधिकार
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Samavasaran Adhikar
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