SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 382
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * * * * * स्वार्थ उपकार का बदला तो मैं कभी चुका ही नहीं सकता। होने को मैं राजा हूँ, किन्तु मैं तुम्हें इस समय * क्या दूँ ? देखो, तुम कभी मेरे नगर में अवश्य आना।'' __ “इसमें देने-लेने की क्या बात है भाई ! पानी और रोटी क्या मैंने आपके हाथ बेची हैं ?' भील * मुस्कराता हुआ बोला। राजा के नेत्रों में कृतज्ञता के आँसू उमड़ आये। बोला-"अच्छा भाई, लेकिन तुम कभी नगर में मेरे महल पर अवश्य आना।" ___भील ने राजा का आग्रह स्वीकार करते हुए कहा-'अच्छा, देखा जायेगा, कभी आऊँगा तो जरूर * मिलूँगा। पर यह तो बता कि तेरा नाम-धाम क्या है ? कैसे तेरा पता चलेगा? क्या तू मुझे देखकर पहचान * लेगा?" राजा को भील की भोली बातों को सुनकर हँसी आ गई, बोला-“अरे भाई ! तुम्हें क्यों नहीं * पहचानूँगा? तुझे इस जीवन में मैं कभी भूल ही नहीं सकता। नगर में आकर तू किसी से भी पूछ लेना * कि राजा का घर कहाँ है ? बस, मैं तुझे मिल जाऊँगा।" राजा अपने घोड़े पर सवार होकर और अपने प्राणदाता भील से विदा लेकर नगर की ओर । " चल पड़ा। नगर का मार्ग उसने उस भील से पूछ लिया था। थोड़ी दूर जाने पर ही उसे अपने सैनिक भी " मिल गये। कुछ दिन बाद वह भील किसी काम से शहर गया। उसने सोचा-'चलो, आया ही हूँ तो उस * राजा से मिल लूँ। बेचारा बार-बार कह गया था।' यह सोचकर उसने किसी से पूछा- “राजा का घर कौन-सा है?" ___ लोगों को उसकी मूर्खता पर बड़ी हँसी आई। एक ने कहा-“अरे, राजा का घर नहीं, महल कह।'' ___ “अरे बाबा, महल ही सही, किन्तु वह है कहाँ, यह बताओ न।' लोगों ने राजमहल का मार्ग बता दिया। वह भील सीधा धड़धड़ाता हुआ वहाँ पहुँच गया। उसने देखा नि कि राजा का घर तो बहुत बड़ा है, ऊँचा है, सुन्दर है। बड़ा अच्छा लग रहा है। वह भीतर जाने के लिए " आगे बढ़ा तो द्वारपाल ने उसे डाँटकर रोकते हुए कहा-“अरे ! अरे ! कहाँ घुसा चला आता है?" । ____ “यहाँ कोई राजा रहता है न?" ___“हाँ, रहता है तो तुझे क्या? बड़ा आया राजा के पास जाने वाला। भाग यहाँ से मूर्ख, ॐ गँवार.........।" द्वारपाल न जाने उस भोले को कितना डाँटता-फटकारता और गालियाँ देता, किन्तु संयोगवश अपने महल के गवाक्ष में बैठे राजा की दृष्टि उस भील पर पड़ गई। उसने द्वारपाल को रोका और स्वयं उठकर दौड़ता हुआ द्वार पर आ गया और उसे प्रेमपूर्वक हाथ पकड़कर भीतर ले गया। द्वारपाल, दरबारी और दास-दासियाँ यह देखकर विस्मित हो गये। HeartRAGINGPRASPASRAEPRISORSPONSPRASPBASPXGPBXGRAHAMROANAONION औपपातिकसूत्र (334) Aupapatik Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy