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________________ 9:269,26200000.00000 which are of the order of an infinite fraction of the minimum physical The activity of underdeveloped dormant life forms like moss and lichen. १५२. से णं एएणं उवाएणं पढमं मणजोगं णिरुंभइ, मणजोगं णिकंभित्ता वयजोगं आणिभइ, वयजोगं णिभित्ता कायजोगं णिसंभइ, कायजोगं णिभित्ता जोगनिरोहं करेइ, जोगनिरोहं करेत्ता अजोगत्तं पाउणइ, · अजोगत्तणं पाउणित्ता ईसिं हस्सपंचक्खरुच्चारणद्धाए असंखेज्जसमइयं अंतोमुहुत्तियं सेलेसिं पडिवज्जइ। पुब्बरइयगुणसेढियं च णं कम्मं तीसे सेलेसिमद्धाए असंखेज्जेहिं गुणसेढीहिं अणंते कम्मंसे खवयंते, वेयणिज्जाउयणामगोए इच्चेते चत्तारि कम्मसे जुगवं खवेइ, खवित्ता ओरालियतेयकम्माइं सवाहिं विप्पजहणाहिं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता उज्जुसेढीपडिवण्णे अफुसमाणगई उड़े एक्कसमएणं अविग्गहेण गंता सागारोवउत्ते सिज्झइ। १५२. इस प्रकार के उपाय द्वारा वे केवली भगवान सर्वप्रथम मनोयोग का निरोध करते हैं, मनोयोग का निरोध कर वचनयोग का निरोध करते हैं, वचनयोग का निरोध कर काययोग का निरोध करते हैं। काययोग का निरोध कर सर्वथा योगनिरोध करते हैं-मन, वचन तथा शरीर से सम्बद्ध प्रवृत्ति मात्र को रोकते हैं। इस क्रम से समस्त योगों का निरोध कर वे अयोगि अवस्था प्राप्त करते हैं। अयोगि अवस्था प्राप्त हो जाने पर मध्यम गति से अ, इ, उ, ऋ, लू के पाँच ह्रस्व अक्षर उच्चारण काल में जितना समय लगता है उतने असंख्यात समय के अन्तर्मुहूर्त काल में शैलेशी अवस्था-(मेरुवत् अकम्प) दशा को प्राप्त हो जाते हैं। उस शैलेशी काल में पूर्व रचित गुण-श्रेणी के रूप में रहे कर्मों को, असंख्यात गुणश्रेणियों में अनन्त कर्मांशों (कर्मदलिकों) को क्षीण करते हुए वेदनीय, आयुष्य, नाम तथा गोत्र-इन चारों कर्मदलिकों का एक साथ क्षय कर देते हैं। इन्हें क्षीण कर औदारिक, तैजस् तथा कार्मण शरीर का पूर्ण रूप से परित्याग कर देते हैं। कर्मों के क्षीण होने पर ऋजुश्रेणिप्रतिपन्न हो अर्थात् आकाश-प्रदेशों की विग्रहरहित सीधी पंक्ति का अवलम्बन कर अन्तराल के प्रदेशों को नहीं स्पर्शते हुए एक समय में ऊर्ध्वगमन कर साकारोपयोगज्ञानोपयोग में सिद्ध अवस्था में विराजमान होते हैं। से 152. This way he first of all stops mental activity. After stopping mental activity he stops all vocal activity. After stopping vocal activity he stops all physical activity. After stopping physical activity he stops all activity or association; which means he stops all intent of any activity associated with mind, speech and body. Having thus terminated all association in the said order he attains & Chanks ke ke sikskske.skeskeekseekeekesekssaks ke sakse FR अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण (315) Story of Ambad Parivrajak * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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