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________________ गोयमा ! ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं पि जुंजइ णो वेउव्वियसरीरकायजोगं जुंजइ, णो वेउव्वियमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, आहारगसरीरकायजोगं जुंजइ, णो आहारगमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, कम्मसरीरकायजोगं पि जुजुइ । पढममेसु समएसु ओरालियसरीरकायजोगं जुंजइ, बिइयछटुसत्तमेसु समएस ओरालियमिस्ससरीरकायजोगं जुंजइ, तइयचउत्थ पंचमेहिं कम्मसरीरकायजोगं जुंजइ । १४५. भगवन् ! काययोग का प्रयोग करते हुए क्या वे केवली औदारिक शरीर काययोग को काम में लेते हैं, औदारिक शरीर से क्रिया करते हैं ? अथवा औदारिक- मिश्र ( औदारिक और कार्मण) दोनों शरीरों से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? अथवा वैक्रिय - मिश्र (कार्मण - मिश्रित अथवा औदारिक मिश्रित वैक्रिय) शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? अथवा आहारक - मिश्र ( औदारिक मिश्रित आहारक शरीर) से क्रिया करते हैं ? क्या कार्मण शरीर से क्रिया करते हैं ? अर्थात् सात प्रकार के काययोग में से किस काययोग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! समुद्घात अवस्था में स्थित केवली भगवान औदारिक शरीर काययोग से क्रिया करते हैं, औदारिक - मिश्र काययोग से भी क्रिया करते हैं । किन्तु वे वैक्रिय शरीर तथा वैक्रिय - मिश्र शरीर से क्रिया नहीं करते। आहारक शरीर तथा आहारक - मिश्र शरीर काययोग से भी क्रिया नहीं करते । अर्थात् वे केवली भगवान मात्र औदारिक तथा औदारिक के साथ-साथ कार्मण शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं। पहले और आठवें समय में वे औदारिक शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं । दूसरे, छठे एवं सातवें समय में वे औदारिक- मिश्र शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं। तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में कार्मण शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं । (अर्थात् सात प्रकार के काययोगों में मात्र औदारिक शरीर काययोग, औदारिक- मिश्र शरीर काययोग तथा कार्मण शरीर काययोग का प्रयोग करते हैं ।) 145. Bhante ! While undertaking activity associated with the body does a Kevali employ association of the Audarik sharira (acts with the gross physical body) or mixed Audarik sharira, i.e. Audarik and Karman (both, gross physical body and karmic) body ? Does he employ Vaikriya sharira (transmutable body) or mixed Vaikriya sharira, i.e. Vaikriya-Karman or Vaikriya-Audarik (karmic and पपातकसू Aupapatik Sutra Jain Education International (310) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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