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Gautam! It is said to be an antarmuhurt (less than one muhurt or 48 minutes) consisting of innumerable Samayas (the ultimate fractional unit of time that cannot be divided any further; the smallest unit of time).
१४३. केवलिसमुग्धाए णं भंते ! कइसमइए पण्णत्ते ?
गोयमा ! अट्ठसमइए पण्णत्ते । तं जहा- पढमे समए दंडं करेइ, बिईए समए कवाडं करेइ, तइए समए मंथं करेइ, चउत्थे समए लोयं पूरेइ, पंचमे समए लोयं पडिसाहरइ, छ समए मंथं पडिसाहरइ, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरइ, अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरइ । तओ पच्छा सरीरत्थे भवइ ।
१४३. भगवन् ! केवली - समुद्घात कितने समय का कहा है ?
गौतम ! केवली - समुद्घात आठ समय का कहा गया है। पहले समय में केवली ऊर्ध्वलोक तथा अधोलोक के अंत तक आत्म-प्रदेशों को विस्तीर्ण कर दण्ड के आकार में फैलाते हैं। दूसरे समय में केवली आत्म-प्रदेशों को कपाटाकार विस्तीर्ण करते हैं अर्थात् आत्म-प्रदेश पूर्व तथा पश्चिम दिशा में फैलकर कपाट का आकार धारण कर लेते हैं। तीसरे समय में केवली उन्हें मन्थानाकार करते हैं - आत्म- प्रदेश दक्षिण तथा उत्तर दिशा में फैलकर मथानी का आकार ले लेते हैं। चौथे समय में केवली लोकशिखर सहित सम्पूर्ण लोक के अन्तरालों (बीच के खाली स्थान को) आत्म-प्रदेशों से भर देते हैं। पाँचवें समय में उसी के विलोम क्रम में अन्तराल स्थित आत्म-प्रदेशों का संहरण करते हैं। छठे समय में मन्थानी के आकार में अवस्थित आत्म-प्रदेशों का संहरण करते हैं। सातवें समय में कपाट के आकार में स्थित आत्म-प्रदेशों को वापस संकुचित करते हैं। आठवें समय में दण्ड के आकार में स्थित आत्म- प्रदेशों का प्रतिसंहरण करते हैं। तत्पश्चात् वे (पूर्ववत्) अपने शरीर में स्थित हो जाते हैं।
143. Bhante ! What is said to be the time required for Kevali - samudghat?
Gautam! It is said to be eight Samayas (the smallest unit of time) In the first Samaya the Kevali expands his soul-spacepoints to envelope space from lowest tip of the lower world (hells) to the highest tip of the upper world (heavens) in shape of a stick (cylindrical). In the second Samaya he expands his soul-spacepoints laterally from east to west taking the shape of a door (cubical but flat). In the third Samaya he expands his soul-space-points across from south to north taking the shape of a churning-stick. In
औपपातिकसूत्र
Aupapatik Sutra
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