________________
G
१२५. से जहाणामए अणगारा भवंति-इरियासमिया, भासासमिया, जाव इणमेव निग्गंथं पावयणं पुरओकाउं विहरंति।
१२५. ये जो अनगार-भगवंत होते हैं, वे ईर्या समिति, भाषा समिति आदि पाँच समितियों में सम्यक् रूप में यतनाशील होते हैं यावत् वे निर्ग्रन्थ के सभी गुणों से युक्त होते थे हैं। निर्ग्रन्थ, प्रवचन वीतराग वाणी रूप जिन-आज्ञा को सम्मुख रखते हुए विचरण करते १) हैं ऐसा पवित्र आचारयुक्त जीवन व्यतीत करते हैं। 9 125. These Anagar Bhagavants (venerated ascetics) properly
follow the right code of self regulation related to movement, speech (etc.)... and so on up to... are endowed with all qualities of a Nirgranth. Keeping in mind the Nirgranth sermon, they lead life observing the pious code of conduct.
१२६. तेसि णं भगवंताणं एएणं विहारेणं विहरमाणाणं अत्थेगइयाणं अणंते जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जइ। ते बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता भत्तं पच्चक्खंति, भत्तं पच्चक्खित्ता बहूई भत्ताइं अणसणाए छेदेति, छेदित्ता जस्सट्ठाए कीरइ नग्गभावे जाव अंतं करंति।
१२६. इस प्रकार निर्ग्रन्थ-प्रवचन को आगे करके संयमी जीवन व्यतीत करने वाले श्रमणों में से कइयों को अन्तरहित, केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न होता है। वे बहुत वर्षों तक केवली-पर्याय का पालन करते हुए पृथ्वी पर विचरण करते हैं। अन्त में आहार का परित्याग करते हैं, बहुत भक्तों का अनशनकाल सम्पन्न कर जिस लक्ष्य के लिए नग्न भाव । धारण किया है उसकी आराधना करते हुए सब दुःखों का अन्त करते हैं। ___126. Some of these Shramans leading a disciplined life keeping in mind the Nirgranth sermon acquire keval-jnana and kevaldarshan (ultimate knowledge and perception). For many years they wander around on this earth as omniscients. In the end they observe the ultimate vow for a long period of fasting and pursuing the goal for which they had embraced the unclad state they end all their miseries (attain liberation).
१२७. जेसि पि य णं एगइयाणं णो केवलवरनाणदंसणे समुष्पज्जइ, ते बहूई वासाइंस छउमत्थपरियागं पाउणंति, पाउणित्ता आबाहे वा अणुप्पण्णे वा भत्तं पच्चक्खंति। ते बहूई १ भत्ताई अणसणाए छेदेति, जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे जाव तमट्ठमाराहित्ता चरिमेहि
AONTAontrontrontAORNORTAORYAOIMMONTHORTOIMAormwomwimminwroommonwirmirmirmirmirmonionwintionarmy
१ अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण
(299)
Story of Ambad Parivrajak
*
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org