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उत्ताणणयण पेच्छणिज्जा पासादीया दरिसणिज्जा, अभिरूवा पडिरूवा।
१. (ग) (चम्पा नगरी)-आराम-क्रीड़ा वाटिका, उद्यान-कुएँ, तालाब, बावड़ी, जल के * छोटे-छोटे बाँध आदि से नंदनवन जैसी शोभा सम्पन्न थी। नगर के बाहर चारों तरफ ॐ गोलाकार, ऊँची, लम्बी और गहरी खाई थी। शत्रु सेना को रोकने के लिए उसका परकोटा
(अवरोध) भींत की दोहरी दीवार से बना था और चक्र, गदा, भुसुंडि-पत्थर फेंकने का विशेष अस्त्र (गोफन) जैसे आयुधों से युक्त था। उसके ऊपर शतघ्नी-यह महाशिला जैसा शस्त्र होता था जिसके गिराने से सैकड़ों व्यक्ति दब-कुचलकर मर जाते थे-रखी थी। नगर गोपुर-(प्रवेश-द्वार) के कपाट बहुत सुदृढ़ दुर्भेद्य थे। नगर को किले के समान घेरे यह परकोटा धनुष जैसे वक्र आकार का था। उस परकोटे पर कपि शीर्षक-कंगूरे बने हुए थे, जिनके छोटे-छोटे छेदों से शत्रु सेना को देखा जा सकता था। ___ अट्टालक-परकोटे के ऊपर आश्रय स्थान (गुमटियाँ) अट्टालिकाएँ बनी हुई थीं। चरिकापरकोटे के मध्य में आठ हाथ चौड़ा राजमार्ग था। परकोटे के बीच-बीच में छोटे-छोटे प्रवेश-द्वार बने हुए थे। वह परकोटा-गोपुरों-नगर-द्वारों, तोरणों आदि से सज्जित था। राजमार्ग पर पहुँचने के लिए अनेक छोटे-छोटे मार्ग-गलियाँ सरणियाँ बनी थीं। __नगरद्वार की अर्गला-(पाटा) और इन्द्रकील-(द्वारों को बन्द करने के लिए, भाले जैसी मजबूत नुकीली कीलें, डोर बोल्ट) सुयोग्य शिल्पाचार्यों-कारीगरों द्वारा बनाई हुई थीं।।
___ नगर के मार्ग हाट-(विपणि) वणिक क्षेत्र-व्यापार के क्षेत्र-बाजार आदि भीड़ भरे रहते * थे। वहाँ अनेक शिल्पी-कुंभार जुलाहे आदि रहते थे जिससे जनता को सुख-सुविधा की * वस्तुएँ सुलभ थीं। शृंगाटक-तिकोने स्थानों, त्रिक-तिराहों, चौराहों, चत्वरों-जहाँ चार से
अधिक रास्ते मिलते हैं, वहाँ पर दुकानें आदि बनी थीं, जहाँ सभी वस्तुएँ उपलब्ध थीं। दुकानों आदि से बाजार रमणीय लगते थे।
राजा की सवारी निकलने के कारण राजमार्ग पर भीड़ लगी रहती थी। उस नगर में अनेक उत्तम घोड़े, मदोन्मत्त हाथी, रथों के समूह, शिविकाएँ-पालकियाँ, स्यन्दमानिका-बड़ी पालकियाँ, यान-गाड़ियाँ, युग्म-डोली जैसे वाहन आदि का जमघट लगा रहता था।
जलाशय विकसित कमलों से शोभित थे। भवन सफेद चूने से पुते हुए अत्यधिक सुन्दर लगते थे। ____ अत्यधिक सुन्दरता व रमणीयता के कारण वह नगरी अपलक दृष्टि से प्रेक्षणीय-देखने योग्य, चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय-एक प्रदर्शनी की वस्तु जैसी थी वह नगरी। वह अभिरूप-जैसी सुन्दर होनी चाहिए वैसी ही प्रतिरूप-मन को लुभाने वाली थी। औपपातिकसूत्र
(8)
Aupapatik Sutra
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