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(५) बैक्रिय - श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के दो सौ अट्ठाईस वर्ष पश्चात् उल्लुकातीर नगर में द्विक्रियावाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्त्तक आचार्य गंग थे। ये एक ही साथ दो क्रियाओं का अनुवेदन मानते हैं।
(६) त्रैराशिक - श्रमण भगवान महावीर के परिनिर्वाण के पाँच सौ चवालीस वर्ष पश्चात् अन्तरंजिका नगरी में त्रैराशिक मत का प्रवर्त्तन हुआ। इसके प्रवर्त्तक आचार्य रोहगुप्त (षडुलूक ) थे। उन्होंने दो राशि के स्थान पर तीन राशियाँ (जीव, अजीव, नो जीव) मानीं ।
(७) अबद्धिक - श्रमण भगवान महावीर के निर्वाण के पाँच सौ चौरासी वर्ष पश्चात् दशपुर नगर में बद्धिक मत का प्रारम्भ हुआ। इसके प्रवर्त्तकं आचार्य गोष्ठामाहिल थे। इनका यह मन्तव्य था कर्म आत्मा का स्पर्श करते हैं किन्तु उनके साथ एकीभूत नहीं होते ।
१ जमालि, ६ रोहगुप्त तथा ७ गोष्ठामाहिल के अतिरिक्त अन्य चार निह्नव अपनी-अपनी भूलों का प्रायश्चित्त लेकर पुनः संघ में सम्मिलित हो गये। जमालि, रोहगुप्त तथा गोष्ठामाहिल, जो संघ से अन्त तक पृथक् ही रहे, उनकी कोई परम्परा नहीं चली। न उनका कोई साहित्य ही उपलब्ध है।
निह्नवों के विशेष वर्णन के लिए विशेषावश्यक भाष्य तथा जैन सिद्धान्त बोल संग्रह, भाग २ में देखा जा सकता है।
Elaboration-In his commentary (Vritti), Acharya Abhayadev Suri has briefly discussed the seven nihnavas (mendacious seceders) mentioned in this aphorism. Scattered references about them are also available in various other scriptures. A brief introduction of nihnavas (mendacious seceders) is as follows
SEVEN NIHNAVAS (MENDACIOUS SECEDERS)
Those people have been included in nihnavas (mendacious seceders) here who had difference of opinion on some particular philosophical topic or principle of Jainism. For these differences they left Bhagavan Mahavir's order but did not join any other school or sect. That is why they were called nihnavas (mendacious seceders) preaching against some specific Jain principle. Nihnavas (mendacious seceders) are those conceited individuals who oppose some established principle to propagate their dogmatic views. There have been seven such groups, two of which came into being after Bhagavan Mahavir attained omniscience and five after his nirvana. Their period extends from fourteen years after Bhagavan Mahavir's attaining omniscience to 584 ANM (After the Nirvana of Mahavir ).
(1) Bahurat-Fourteen years after Bhagavan Mahavir attained omniscience the Bahurat-vaad school came into existence in Shravasti. Its founder was Jamali. This Kshatriya prince was the son-in-law of
औपपातिकसूत्र
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