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________________ all their search, when they failed to find any water-doner they once again deliberated संथारा - संलेखना ग्रहण ८६. “ इह णं देवाणुप्पिया ! उदगदातारो णत्थि, तं णो खलु कप्पइ अम्हं अदिण्णं गिण्हित्तए, अदिण्णं साइज्जित्तिए, तं मा णं अम्हे इयाणिं आवइकालं पि अदिण्णं गिण्हामो, अदिण्णं साइज्जामो, मा णं अम्हं तवलोवे भविस्सइ । तं सेयं खलु अम्हं देवाप्पिया ! तिदंडयं कुंडियाओ य, कंचणियाओ य, करोडियाओ य, भिसियाओ य, छण्णालए य, अंकुसए य, केसरियाओ य, पवित्तए य, गणेत्तियाओ य, छत्तए य, वाहणाओ य, पाउणाओ य, धाउरत्ताओ एगंते एडित्ता गंगं महाणई ओगाहित्ता बालुयासंथारए संथरित्ता संलेहणाझूसियाणं, भत्तपाणपडियाइक्खियाणं, पाओवगयाणं कालं अणवकंखमाणाणं विहरित्तए । " त्ति कट्टु अण्णमण्णस्स अंतिए एयमहं पडिसुणेंति, अण्णमण्णस्स अंतिए एयमट्ठ पडिणित्ता दिंडए य जाव एगंते एडेंति, एडित्ता गंगं महाणई ओगाहेंति, ओगाहित्ता बालु आसंथारए संथरंति, संथरित्ता बालुयासंथारयं दुरूहिंति, दुरूहित्ता पुरत्थाभिमुहा संपलियंकनिसण्णा करयल जाव कट्टु एवं वयासी ८६. "देवानुप्रियो ! यहाँ कोई पानी देने वाला नहीं है। बिना दिया हुआ जल लेना, उसका सेवन करना हमारे लिए कल्पनीय नहीं है । इसलिए हम इस समय आपत्तिकाल में भी अदत्त जल का ग्रहण व सेवन न करें, जिससे हमारे व्रत का भंग न हो। अतः हमारे लिए यही श्रेयस्कर है कि हम त्रिदण्ड (तीन दंडों को एक साथ बाँधकर बनाया गया एक दण्ड), कुण्डिकाएँ - कमंडलु, कांचनिकाएँ - रुद्राक्ष मालाएँ, करोटिकाएँ- मृत्तिका या मिट्टी के पात्र, वृषिकाएँ - बैठने की पटड़ियाँ, तिपाइयाँ, षण्नालिकाएँ - त्रिकाष्ठिकाएँ, अंकुशदेव - पूजा हेतु वृक्षों के पत्ते गिराकर संगृहीत करने के उपयोग में आने वाले अंकुश, केशरिकाएँ - सफाई करने, पोंछने आदि के उपयोग में लेने योग्य वस्त्र खण्ड, पवित्रिकाएँताँबे की अंगूठियाँ, गणेत्रिकाएँ - हाथों में धारण करने की रुद्राक्ष मालाएँ - सुमिरिनियाँ, छत्रछाते, पैरों में धारण करने की पादुकाएँ, काठ की खड़ाऊ, धातुरक्त - गेरुए रंग की शाटिकाएँ - धोतियाँ इन सबको एकान्त में छोड़कर गंगा महानदी के तट पर बालू का संस्तारक ( बिछौना) तैयार कर संलेखनापूर्वक - शरीर एवं कषायों को क्षीण करते हुए आहार- पानी का परित्याग कर, कटे हुए वृक्ष जैसी निश्चेष्टावस्था वाला पादोपगमन स्वीकार कर मृत्यु की आकांक्षा न रखते हुए स्थिर हो जायेंष” अम्बड़ परिव्राजक प्रकरण Jain Education International ( 253 ) For Private & Personal Use Only Story of Ambad Parivrajak www.jainelibrary.org
SR No.002910
Book TitleAgam 12 Upang 01 Aupapatik Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2003
Total Pages440
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_aupapatik
File Size16 MB
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